इसलिए उचित है कि जितने समय तक प्रभु येशु हमारे बीच आते-जाते रहे, अर्थात् योहन के बपतिस्मा से ले कर प्रभु के स्वर्गारोहण के दिन तक जो लोग बराबर हमारे साथ थे, उन में से एक हमारे साथ प्रभु के पुनरुत्थान का साक्षी बने।” इस पर उन्होंने दो व्यक्तियों को प्रस्तुत किया−यूसुफ को, जो बरसब्बास कहलाता था और जिसका उपनाम युस्तुस था, और मत्तियस को। तब उन्होंने इस प्रकार प्रार्थना की, “प्रभु! तू सब का हृदय जानता है। यह प्रकट कर कि तूने इन दोनों में से किस को चुना है, ताकि वह उस धर्मसेवा तथा प्रेरित-पद का स्थान ग्रहण करे, जिस से पतित हो कर यूदस अपने स्थान को चला गया।” उन्होंने उन दोनों के लिए चिट्ठी डाली। चिट्ठी मत्तियस के नाम निकली और वह ग्यारह प्रेरितों के साथ सम्मिलित कर लिया गया।
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