प्रेरितों 1:15-26

प्रेरितों 1:15-26 HINCLBSI

उन्‍हीं दिनों पतरस विश्‍वासी भाई-बहिनों के बीच खड़े हुए, जो लगभग एक सौ बीस व्यक्‍तियों का समुदाय था। पतरस ने कहा, “ भाइयो! यह अनिवार्य था कि धर्मग्रन्‍थ की वह भविष्‍यवाणी पूरी हो जाये, जो पवित्र आत्‍मा ने दाऊद के मुख से यूदस [यहूदा] के विषय में की थी। यूदस तो येशु को गिरफ्‍तार करने वालों का अगुआ बन गया। वह हम लोगों में गिना जाता था और धर्मसेवा में हमारा संभागी ठहराया गया था। “उसने अपने अधर्म की कमाई से एक खेत खरीदा। वह उस में मुँह के बल गिरा, उसका पेट फट गया और उसकी सारी अँतड़ियाँ बाहर निकल आयीं। यह बात यरूशलेम के सब निवासियों को मालूम हो गयी; इस कारण वह खेत उनकी भाषा में ‘हकेलदमा’ अर्थात् ‘रक्‍त का खेत’ कहलाता है। “भजन-संहिता में यह लेख भी है : ‘उसका निवास स्‍थान उजड़ जाए; उस में कोई भी निवास नहीं करे’ और ‘कोई दूसरा उसका पद ग्रहण करे।’ इसलिए उचित है कि जितने समय तक प्रभु येशु हमारे बीच आते-जाते रहे, अर्थात् योहन के बपतिस्‍मा से ले कर प्रभु के स्‍वर्गारोहण के दिन तक जो लोग बराबर हमारे साथ थे, उन में से एक हमारे साथ प्रभु के पुनरुत्‍थान का साक्षी बने।” इस पर उन्‍होंने दो व्यक्‍तियों को प्रस्‍तुत किया−यूसुफ को, जो बरसब्‍बास कहलाता था और जिसका उपनाम युस्‍तुस था, और मत्तियस को। तब उन्‍होंने इस प्रकार प्रार्थना की, “प्रभु! तू सब का हृदय जानता है। यह प्रकट कर कि तूने इन दोनों में से किस को चुना है, ताकि वह उस धर्मसेवा तथा प्रेरित-पद का स्‍थान ग्रहण करे, जिस से पतित हो कर यूदस अपने स्‍थान को चला गया।” उन्‍होंने उन दोनों के लिए चिट्ठी डाली। चिट्ठी मत्तियस के नाम निकली और वह ग्‍यारह प्रेरितों के साथ सम्‍मिलित कर लिया गया।