2 शमूएल 12:1-22

2 शमूएल 12:1-22 HINCLBSI

तब प्रभु ने नबी नातान को दाऊद के पास भेजा। वह दाऊद के पास आया। उसने दाऊद से कहा, ‘एक नगर में दो मनुष्‍य रहते थे। एक धनी था, और दूसरा गरीब। धनी के पास बहुत भेड़-बकरियाँ और गाय-बैल थे। किन्‍तु गरीब के पास केवल एक छोटी-सी भेड़ थी। उसने उसको खरीदा था। वह उसका पालन करने लगा। भेड़ उसके बच्‍चों के साथ बड़ी होने लगी। वह उसके साथ ही रोटी खाती थी। उसके प्‍याले में पानी पीती थी। उसकी गोद में सोती थी। वह उसके लिए बेटी के समान थी। ‘एक दिन धनी मनुष्‍य के पास एक यात्री आया। किन्‍तु धनी मनुष्‍य उस पथिक को, जो उसके पास आया था, भोजन के लिए अपने रेवड़ में से पशु देने को तैयार न था। अत: उसने गरीब की भेड़ छीन ली, और अपने यहाँ आए हुए यात्री के लिए उसका मांस पकाया।’ यह सुनकर दाऊद का क्रोध उस धनी मनुष्‍य के प्रति बहुत भड़क उठा। उसने नातान से कहा, ‘जीवन्‍त प्रभु की सौगन्‍ध! यह अन्‍याय करनेवाला मनुष्‍य निश्‍चय ही मृत्‍यु-दण्‍ड के योग्‍य है। उसे चार गुना भेड़ लौटाना होगा; क्‍योंकि उसने यह अन्‍यायपूर्ण कार्य किया है। उसने गरीब पर दया नहीं की।’ नातान ने दाऊद से कहा, ‘महाराज, आप ही वह धनी मनुष्‍य हैं। इस्राएल का प्रभु परमेश्‍वर यों कहता है, “मैंने तुझे इस्राएल देश का राजा अभिषिक्‍त किया। मैंने तुझे शाऊल के हाथ से मुक्‍त किया। मैंने तुझे तेरे स्‍वामी का राजभवन दिया। तेरी गोद में तेरे स्‍वामी की पत्‍नियाँ डालीं। मैंने तुझे इस्राएल और यहूदा प्रदेश की समस्‍त प्रजा दी। यदि यह कम था तो मैं तुझे और देता। पर तूने मुझ-प्रभु के वचन का तिरस्‍कार क्‍यों किया? जो कार्य मेरी दृष्‍टि में बुरा है, उसको तूने क्‍यों किया? तूने तलवार से ऊरियाह हित्ती की हत्‍या करवा दी, और उसकी पत्‍नी को छीनकर अपनी पत्‍नी बना लिया। तूने अम्‍मोनी सैनिकों की तलवार से ऊरियाह का वध कर दिया। तेरे इस कार्य के फलस्‍वरूप अब तलवार तेरे परिवार से कभी दूर न होगी। तूने मेरा तिरस्‍कार किया, और ऊरियाह हित्ती की पत्‍नी को छीनकर उसे अपनी पत्‍नी बनाया।” प्रभु यों कहता है, “मैं तेरे ही परिवार से तेरे विरुद्ध बुराई उत्‍पन्न करूँगा। मैं तेरी आँखों के सामने तेरी पत्‍नियाँ तेरे जाति-भाई को दे दूँगा। वह सूरज के प्रकाश में खुले-आम तेरी पत्‍नियों के साथ सहवास करेगा। तूने यह कुकर्म छिपकर किया। परन्‍तु मैं समस्‍त इस्राएली समाज के सम्‍मुख, सूरज के प्रकाश में यह कार्य करवाऊंगा।” ’ दाऊद ने नातान से कहा, ‘मैंने प्रभु के विरुद्ध पाप किया।’ नातान ने दाऊद को उत्तर दिया, ‘प्रभु ने भी आपके पाप को क्षमा किया। अब आप पाप के कारण नहीं मरेंगे। किन्‍तु आपने इस कार्य के द्वारा प्रभु का घोर अपमान किया है। इसलिए जो पुत्र आपको उत्‍पन्न हुआ है, वह अवश्‍य ही मर जाएगा।’ नातान अपने घर चला गया। प्रभु ने उस बालक पर, जो ऊरियाह की पत्‍नी ने दाऊद से जन्‍म दिया था, प्रहार किया, और वह बीमार हो गया। दाऊद ने बालक के लिए परमेश्‍वर से अनुनय-विनय की। उसने उपवास किया। वह महल में आया। वह रात भर भूमि पर पड़ा रहा। उसके परिवार के बड़े-बूढ़े उसे भूमि पर से उठाने के लिए आए। पर वह नहीं उठा। उसने उनके साथ भोजन नहीं किया। सातवें दिन बालक की मृत्‍यु हो गई। दरबारी दाऊद को यह बताने से डरे कि बालक की मृत्‍यु हो गई। वे यह सोचते थे, ‘जब बालक जीवित था और हमने महाराज से कहा था, तब उन्‍होंने हमारी बात नहीं सुनी। अब हम उनसे यह बात कैसे कह सकते हैं कि बालक मर गया? यह बात सुनकर वह अपना अनिष्‍ट कर लेंगे।’ परन्‍तु जब दाऊद ने यह देखा कि उसके दरबारी आपस में धीरे-धीरे बातें कर रहे हैं, तब उसने समझ लिया कि बालक की मृत्‍यु हो गई। उसने अपने दरबारियों से पूछा, ‘क्‍या बालक मर गया?’ उन्‍होंने कहा, ‘हाँ, महाराज, वह मर गया।’ दाऊद भूमि पर से उठा। उसने स्‍नान किया। तेल लगाया। अपने वस्‍त्र बदले। तत्‍पश्‍चात् वह प्रभु के शिविर में गया। वहाँ उसने झुककर प्रभु की आराधना की। उसके बाद वह अपने महल को लौटा। उसने भोजन मांगा। सेवकों ने उसके सम्‍मुख भोजन परोस दिया। उसके दरबारियों ने उससे पूछा, ‘महाराज, यह आपने क्‍या किया? जब तक बालक जीवित रहा, आपने उपवास किया। आप उसके लिए रोए। परन्‍तु जब बालक मर गया, आप भूमि पर से उठे। आपने भोजन किया।’ दाऊद ने कहा, ‘जब तक बालक जीवित रहा, मैंने उपवास किया। मैं रोया। मैं यह सोचता था, “कौन जाने प्रभु मुझ पर कृपा करे, और बालक बच जाए।”