इस प्रकार हम देखते हैं कि प्रभु धर्मात्माओं को संकटों से छुड़ाने और विधर्मियों को दण्ड देने के लिए उन्हें न्याय के दिन तक रख छोड़ने में समर्थ है, विशेष रूप से उन लोगों को, जो अशुद्ध वासनाओं के वशीभूत हो कर भोग-विलास में जीवन बिताते और प्रभुत्व को तुच्छ समझते हैं। वे उद्धत एवं घमण्डी हैं और स्वर्गिक सत्वों की निन्दा करने से नहीं डरते, जब कि स्वर्गदूत, जो उन लोगों से कहीं अधिक समर्थ और शक्तिशाली हैं, प्रभु की ओर से उनके विरुद्ध निन्दात्मक अभियोग नहीं लगाते। किन्तु वे विवेकहीन पशुओं के समान हैं, जो स्वभावत: शिकार बनने और मारे जाने के लिए पैदा होते हैं। वे ऐसी बातों की निन्दा करते हैं, जिन्हें नहीं समझते। वे पशुओं की तरह नष्ट हो जायेंगे और इस प्रकार अपने अधर्म का दण्ड भोगेंगे। वे दिन-दोपहर भोग-विलास में बिताना पसन्द करते हैं। वे कलंकित एवं दूषित हैं और आप लोगों के साथ दावत उड़ाते समय कपट-पूर्ण बातें करने में उन्हें आनन्द आता है। उनकी आँखें व्यभिचार से भरी हैं और उन में कभी तृप्त न होनेवाली पाप की भूख बनी हुई है। वे दुर्बल आत्माओं को लुभाते हैं। उनका मन लोभ में प्रशििक्षत हो चुका है। यह अभिशप्त सन्तति सन्मार्ग छोड़ कर बोसोर के पुत्र बिलआम के मार्ग पर भटक गयी है। बिलआम अधर्म की मजदूरी चाहता था, किन्तु उसे अपने अपराध की डाँट सुननी पड़ी। एक गूंगा गधा मनुष्य की तरह बोलने लगा और इस प्रकार नबी का पागलपन नियन्त्रित हो गया। वे लोग सूखे जलस्रोत और आँधी द्वारा उड़ाये हुए बादल हैं। गहरा अन्धकार ही उनके लिए रख छोड़ा गया है।
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