राजा ने एलियाह के पास पचास सैनिकों तथा उनके सेना-नायक को भेजा। सेना-नायक गया। उस समय एलियाह पहाड़ की चोटी पर बैठे हुए थे। सेना-नायक ने एलियाह को पुकारा, ‘ओ परमेश्वर के जन! महाराज ने यह कहा है: “नीचे उतरो!” ’ परन्तु एलियाह ने सेना-नायक को यह उत्तर दिया, ‘यदि मैं परमेश्वर का जन हूं, तो आकाश से आग बरसे और तुझे तथा तेरे पचास सैनिकों को भस्म कर दे!’ तत्काल आकाश से आग बरसने लगी और आग ने सेना-नायक और उसके पचास सैनिकों को भस्म कर दिया। राजा ने एलियाह के पास पुन: पचास सैनिकों और उनके सेना-नायक को भेजा। सेना-नायक गया। उसने एलियाह को पुकारा, ‘ओ परमेश्वर के जन! महाराज यों कहते हैं : “अविलम्ब नीचे उतरो!” ’ परन्तु एलियाह ने सेना-नायक को यह उत्तर दिया, ‘यदि मैं परमेश्वर का जन हूं तो आकाश से आग बरसे और तुझे तथा तेरे पचास सैनिकों को भस्म कर दे!’ तत्काल आकाश से परमेश्वर की आग बरसने लगी और आग ने सेना-नायक और पचास सैनिकों को भस्म कर दिया। राजा ने एलियाह के पास पुन: पचास सैनिकों के तीसरे दल को तथा उनके सेना-नायक को भेजा। तीसरा सेना-नायक पहाड़ पर चढ़ा। वह एलियाह के समीप आया। उसने एलियाह के सम्मुख घुटने टेके, और उनसे यह निवेदन किया, “हे परमेश्वर के जन! कृपाकर, मेरे प्राण को और अपने पचास सेवकों के प्राण को अपनी दृष्टि में तुच्छ मत समझिए। देखिए, आकाश से आग बरसी थी। उसने दो सेना-नायकों और उनके पचास-पचास सैनिकों के दल को भस्म कर दिया था। अब, कृपाकर, मेरे प्राण को अपनी दृष्टि में तुच्छ मत समझिए।’ तब प्रभु के दूत ने एलियाह से कहा, ‘सेना-नायक के साथ नीचे उतर। उससे मत डर।’ अत: एलियाह उठे। वह सेना-नायक के साथ नीचे उतरे, और राजा के पास गए।
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