कष्टों की अग्निपरीक्षा में भी उनका आनन्द अपार रहा और घोर दरिद्रता की दशा में रहते हुए भी उन्होंने बड़ी उदारता का परिचय दिया है। उनके विषय में मेरी साक्षी है कि उन्होंने अपने सामर्थ्य के अनुसार, बल्कि उस से भी अधिक, स्वेच्छा से दान दिया है। उन्होंने स्वयं ही बड़े आग्रह के साथ मुझ से अनुरोध किया कि उन्हें भी सन्तों की सहायता के लिए सेवा-कार्य में भाग लेने का सौभाग्य मिले।
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