2 कुरिन्थियों 2:1-10

2 कुरिन्थियों 2:1-10 HINCLBSI

इसलिए मैंने निश्‍चय किया कि मैं आपको फिर दु:ख देने के लिए आप के यहां नहीं आऊंगा। यदि मैं आपको दु:ख देता हूँ, तो कौन मुझे प्रसन्न कर सकता है? जिस व्यक्‍ति को मुझे दु:ख देना पड़ा, वही मुझे प्रसन्न कर सकता है। तब मैंने इस बात को लेकर पत्र लिखा, जिससे कहीं ऐसा न हो कि मेरे आने पर, जिन लोगों से मुझे आनन्‍द मिलना चाहिए, वे मुझे दु:खी बनायें; क्‍योंकि आप सब के विषय में मेरा दृढ़ विश्‍वास है कि मेरा आनन्‍द आप सब का आनन्‍द भी है। मैंने बड़े कष्‍ट में, हृदय की गहरी वेदना सहते हुए और आँसू बहा-बहा कर वह पत्र लिखा था। मैंने आप लोगों को दु:ख देने के लिए नहीं लिखा था, बल्‍कि इसलिए कि आप यह जान जायें कि मैं आप लोगों को कितना अधिक प्‍यार करता हूँ। यदि किसी ने दु:ख दिया है, तो उसने मुझे नहीं, बल्‍कि एक प्रकार से आप सब को दु:ख दिया है, हालांकि हमें इस बात को अधिक महत्व नहीं देना चाहिए। आप लोगों के समुदाय ने उस व्यक्‍ति को जो दण्‍ड दिया है, वह पर्याप्‍त है। अब आप को ही उसे क्षमा और सान्‍त्‍वना देनी चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि वह अत्‍यधिक दु:ख में डूब जाये। इसलिए मैं आप से निवेदन करता हूँ कि आप उसके प्रति प्रेम दिखाने का निर्णय करें। मैंने आपकी परीक्षा लेने के उद्देश्‍य से भी लिखा था। मैं यह जानना चाहता था कि आप सभी बातों में आज्ञाकारी हैं या नहीं। जिसे आप क्षमा करते हैं, उसे मैं भी क्षमा करता हूं। जहां तक मुझे क्षमा करनी थी, मैंने आप लोगों के कारण मसीह के प्रतिनिधि के रूप में क्षमा प्रदान की है