प्रभु ने मनश्शे और उसकी जनता को अपने नबियों के माध्यम से समझाया; किन्तु उन्होंने प्रभु की बात नहीं सुनी। अत: प्रभु ने असीरिया देश की सेना और उसके सेनापतियों से उन पर आक्रमण करवाया। उन्होंने मनश्शे को नकेल से बांधा, और पीतल की जंजीरों से उसको जकड़ा और उसको बेबीलोन देश ले गए। जब वह बेबीलोन में बन्दी था, तब उसने अपने संकट में अपने प्रभु-परमेश्वर की कृपा के लिए विनती की। उसने अपने पूर्वजों के परमेश्वर के सम्मुख स्वयं को अत्यधिक विनम्र और दीन किया। उसने परमेश्वर से प्रार्थना की और परमेश्वर ने उसकी विनती स्वीकार की। उसने उसकी प्रार्थना सुनी; और उसको पुन: यरूशलेम में ले आया, और उसका राज्य लौटा दिया। तब मनश्शे को ज्ञात हुआ कि प्रभु ही परमेश्वर है। इसके पश्चात् उसने एक शहरपनाह बनाई। यह दाऊदपुर की बाहरी सीमा थी, और गीहोन के पश्चिम में, घाटी में मत्स्य-द्वार तक जाती थी। इस प्रकार उसने ओपेल को घेर दिया और उसको बहुत ऊंचा कर दिया। उसने यहूदा प्रदेश के सब किलाबंद नगरों में सेनापति नियुक्त किये। उसने प्रभु के भवन में प्रतिष्ठित विदेशी देवी-देवताओं की मूर्तियां हटा दीं। यरूशलेम में स्थान-स्थान पर तथा जिस पहाड़ पर प्रभु का भवन स्थित है, उस पर उसने वेदियाँ बनाई थीं। उसने इन सब वेदियों को तोड़ दिया, और उनके टुकड़ों को यरूशलेम नगर के बाहर फेंक दिया। उसने प्रभु की वेदी की मरम्मत की, और उस पर प्रभु की सहभागिता-बलि तथा धन्यवाद-बलि चढ़ाई। उसने यहूदा प्रदेश के सब निवासियों को आदेश दिया कि इस्राएली राष्ट्र के प्रभु परमेश्वर की आराधना करो।
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