वह प्रतिवर्ष ऐसा ही करती थी; जब-जब वे प्रभु-गृह को जाते तब-तब पनिन्नाह हन्नाह को चिढ़ाती थी। हन्नाह रोती, और भोजन नहीं करती। उसका पति एलकानाह उससे पूछता, ‘हन्नाह, तुम क्यों रो रही हो? तुमने भोजन क्यों नहीं किया? क्यों तुम्हारा हृदय दु:खी है? क्या मैं तुम्हारे लिए दस पुत्रों से बढ़कर नहीं हूँ?’ किसी दिन जब वे शिलोह में खा-पी चुके तब हन्नाह उठी, और वह प्रभु के सम्मुख खड़ी हो गई। पुरोहित एली प्रभु के मन्दिर की चौखट के बाजू में अपने आसन पर बैठा था। हन्नाह घोर दु:ख में डूबी हुई थी। उसने प्रभु से प्रार्थना की और वह फूट-फूट कर रोने लगी। उसने प्रभु से यह स्पष्ट मन्नत मानी, ‘हे स्वर्गिक सेनाओं के प्रभु, यदि तू अपनी सेविका के दु:ख पर निश्चय ही दृष्टि करेगा, मेरी सुधि लेगा, अपनी सेविका को नहीं भूलेगा, और मुझे, अपनी सेविका को एक पुत्र प्रदान करेगा तो मैं उसे जीवन भर के लिए तुझ-प्रभु की सेवा में अर्पित कर दूँगी। उसके सिर पर उस्तरा कभी नहीं फेरा जाएगा।’ हन्नाह प्रभु के सम्मुख बहुत समय से प्रार्थना कर रही थी। एली उसके ओंठों को ध्यान से देख रहा था। हन्नाह हृदय में बात कर रही थी। केवल उसके ओंठ हिल रहे थे, पर उसकी आवाज सुनाई नहीं दे रही थी। अत: एली ने समझा कि वह नशे में है। एली ने उससे कहा, ‘तुम कब तक नशे में रहोगी? जाओ और नशा उतरने दो।’ हन्नाह ने उत्तर दिया, ‘नहीं, मेरे स्वामी, मैं ऐसी स्त्री हूँ, जिसके दिन कठिनाई से बीत रहे हैं। न मैंने अंगूर का रस पीया है, और न शराब। मैं प्रभु के सम्मुख अपने प्राण को उण्डेल रही थी। कृपया मुझे, अपनी सेविका को ओछी स्त्री मत समझिए। मैं अपने दु:ख और चिढ़ की अधिकता के कारण अब तक बात करती रही।’ एली ने कहा, ‘शान्ति से जाओ! जो मांग तुमने इस्राएल के परमेश्वर से की है, वह तुम्हें प्रदान करे।’ हन्नाह ने कहा, ‘मुझ पर, आपकी सेविका पर, आपकी कृपा-दृष्टि बनी रहे!’ यह कहकर वह अपनी राह चली गई। वह भोजन-कक्ष में आई। उसने अपने पति के साथ भोजन किया। उस दिन के बाद उसने फिर कभी मुँह नहीं लटकाया। वे सबेरे सोकर उठे। उन्होंने प्रभु के सम्मुख झुककर वन्दना की। उसके बाद वे रामाह नगर में अपने घर लौट गए। एलकानाह ने अपनी पत्नी हन्नाह से सहवास किया। प्रभु ने हन्नाह की सुधि ली। वह गर्भवती हुई, और यथासमय उसने एक पुत्र को जन्म दिया। उसने अपने पुत्र का नाम ‘शमूएल’ रखा। वह कहती थी, ‘क्योंकि मैंने इसको प्रभु से माँगा था।’
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