कुआँरों अथवा कुआँरियों के विषय में मुझे प्रभु की ओर से कोई आदेश नहीं मिला है, किन्तु प्रभु की दया से विश्वास के योग्य होने के नाते मैं अपनी सम्मति दे रहा हूँ। मैं समझता हूँ कि वर्तमान संकट में यही अच्छा है कि मनुष्य जिस स्थिति में है, उसी स्थिति में रहे। तुम ने किसी स्त्री से विवाह किया है? तो उससे मुक्त होने का प्रयत्न न करो। क्या तुम अविवाहित हो? तो विवाह के लिये पत्नी की खोज न करो। फिर भी यदि तुम विवाह करते हो, तो इसमें कोई पाप नहीं और यदि कुआँरी विवाह करती है, तो वह पाप नहीं करती। किन्तु ऐसे लोगों को इस जीवन में अवश्य ही कष्ट सहने पड़ेंगे। इन से मैं आप लोगों को बचाना चाहता हूँ। भाइयो और बहिनो! मैं आप लोगों से यह कहता हूँ : समय थोड़ा ही रह गया है। अब से जो विवाहित हैं वे भी इस तरह रहें मानो विवाहित नहीं हैं; जो शोक करते हैं, वे ऐसे रहें मानो शोक नहीं कर रहे हैं; जो आनन्द मनाते हैं, वे ऐसे मनायें मानो आनन्द नहीं मना रहे हैं; जो व्यवसाय करते हैं वे ऐसे करें मानो उनके पास कुछ नहीं है; जो इस संसार की चीजों का उपभोग करते हैं, वे ऐसे करें मानो उनका उपभोग नहीं करते हैं; क्योंकि संसार का वर्तमान रूप लुप्त होता जा रहा है। मैं तो चाहता हूँ कि आप लोगों को कोई चिन्ता न हो। जो अविवाहित है, वह प्रभु की बातों की चिन्ता करता है। वह प्रभु को प्रसन्न करना चाहता है। जो विवाहित है, वह सांसारिक बातों की चिन्ता करता है। वह अपनी पत्नी को प्रसन्न करना चाहता है। उस में परस्पर-विरोधी भावों का संघर्ष है। जिसका पति नहीं रह गया और जो कुआँरी है, वे प्रभु की बातों की चिन्ता करती हैं। वे तन और मन से पवित्र होने की कोशिश में लगी रहती हैं। जो विवाहिता है, वह सांसारिक बातों की चिन्ता करती है और अपने पति को प्रसन्न करना चाहती है। मैं आप लोगों की भलाई के लिए यह कह रहा हूँ। मैं आपकी स्वतन्त्रता पर रोक लगाना नहीं चाहता। मैं तो आप लोगों के सामने प्रभु की अनन्य भक्ति का आदर्श रख रहा हूँ। यदि कोई समझता है कि वह अपनी प्रबल प्रवृत्तियों के कारण अपनी मंगेतर युवती के साथ अशोभनीय व्यवहार कर सकता है और उसे इसके सम्बन्ध में कुछ करना आवश्यक मालूम पड़ता है, तो वह जो चाहता है, कर सकता है। वे विवाह करें-इसमें कोई पाप नहीं। किन्तु जिसका मन सुदृढ़ है, जो किसी भी तरह बाध्य नहीं है और अपनी इच्छा के अनुसार चलने का अधिकारी है, यदि उसने अपने मन में यह संकल्प किया है कि वह अपनी मंगेतर युवती का कुआँरापन सुरक्षित रखेगा, तो वह अच्छा करता है। इस प्रकार जो अपनी मँगेतर युवती से विवाह करता है, वह अच्छा करता है और जो विवाह नहीं करता, वह और भी अच्छा करता है। जब तक किसी स्त्री का पति जीवित है, वह तब तक विवाह-संबंध से बंधी रहती है। यदि पति मर जाता है, तो वह स्वतंत्र हो जाती और जिसके साथ चाहे, विवाह कर सकती है-परन्तु यह विवाह प्रभु में हो! फिर भी यदि वह वैसी ही रह जाये, तो वह अधिक धन्य है। यह मेरा विचार है और मुझे विश्वास है कि परमेश्वर का आत्मा मुझमें भी विद्यमान है।
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