व्यवस्था में लिखा है, “प्रभु कहता है : मैं अन्यभाषा-भाषियों द्वारा विदेशी भाषा में इस प्रजा से बोलूँगा; फिर भी वह मेरी बात पर ध्यान नहीं देगी।” इससे स्पष्ट है कि अध्यात्म भाषाएँ विश्वासियों के लिए नहीं, बल्कि अविश्वासियों के लिए चिन्ह स्वरूप हैं और नबूवत अविश्वासियों के लिए नहीं, बल्कि विश्वासियों के लिए है। जब सारी कलीसियां सहभागिता के लिए एकत्र है, तब यदि सब लोग अध्यात्म भाषाओं में बोलने लगें और उस समय कोई अदीिक्षत या अविश्वासी व्यक्ति भीतर आ जायें, तो क्या वे यह नहीं कहेंगे कि आप प्रलाप कर रहे हैं? परन्तु यदि सब नबूवत करें और कोई अविश्वासी या अदीिक्षत व्यक्ति भीतर आ जाये, तो वह उनकी बातों से प्रभावित हो कर अपने को पापी समझेगा और अपने अन्त:करण की जाँच करेगा। उसके हृदय के रहस्य प्रकट हो जायेंगे। वह मुँह के बल गिर कर परमेश्वर की आराधना करेगा और यह स्वीकार करेगा कि परमेश्वर सचमुच आप लोगों के बीच विद्यमान है। इसका निष्कर्ष क्या है? हे भाइयो और बहिनो! जब-जब आप आराधना हेतु एकत्र होते हैं, तो कोई भजन सुनाता है, कोई शिक्षा देता है, कोई अपने पर प्रकट किया हुआ सत्य बताता है, कोई अध्यात्म भाषा में बोलता है और कोई उसकी व्याख्या करता है; किन्तु यह सब आध्यात्मिक निर्माण के लिए होना चाहिए। जहाँ तक अध्यात्म भाषाओं में बोलने का प्रश्न है, दो या अधिक-से-अधिक तीन व्यक्ति बारी-बारी से ऐसा करें और कोई दूसरा व्यक्ति इसकी व्याख्या प्रस्तुत करे। यदि कोई व्याख्या करने वाला नहीं हो, तो अध्यात्म भाषा में बोलने वाला धर्मसभा में चुप रहे। वह अपने से और परमेश्वर से बोले। नबूवत करने वालों में से दो या तीन बोलें और दूसरे लोग उनकी वाणी की परीक्षा करें। यदि बैठे हुए लोगों में से किसी पर कोई सत्य प्रकट किया जाता हो, तो पहला वक्ता चुप रहे। आप सभी लोग नबूवत कर सकते हैं, किन्तु आप एक-एक कर के बोलें, जिससे सब को शिक्षा और प्रोत्साहन मिले। नबूवत करते समय नबी अपनी आत्मा पर नियन्त्रण रख सकता है; क्योंकि परमेश्वर अव्यवस्था का नहीं, वरन शान्ति का परमेश्वर है। सन्तों की सभी कलीसियाओं की तरह आपकी धर्मसभाओं में भी स्त्रियाँ चुप रहें। उन्हें इस तरह बोलने की अनुमति नहीं दी जाती है। वे आत्मनियंत्रित रहें, जैसा कि व्यवस्था भी कहती है। यदि वे किसी बात की जानकारी प्राप्त करना चाहती हैं, तो वे घर में अपने पतियों से पूछें। धर्मसभा में बोलना स्त्री के लिए उपयुक्त नहीं है। क्या परमेश्वर का वचन आप ही लोगों के यहाँ से फैला, या केवल आप लोगों तक पहुँचा है? यदि कोई समझता है कि वह नबूवत या अन्य आध्यात्मिक वरदानों से सम्पन्न है, तो वह यह अच्छी तरह जान ले कि मैं जो कुछ आप लोगों को लिख रहा हूँ, वह प्रभु का आदेश है। यदि कोई यह अस्वीकार करता है, तो वह प्रभु द्वारा अस्वीकार किया जाता है। मेरे भाइयो और बहिनो! निष्कर्ष यह है : आप नबूवत के वरदान की अभिलाषा किया करें और अध्यात्म भाषाओं में बोलने वालों को न रोकें। परन्तु सब कुछ उचित और व्यवस्थित रूप से किया जाये।
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