1 कुरिन्थियों 12:21-27

1 कुरिन्थियों 12:21-27 HINCLBSI

आँख हाथ से नहीं कह सकती, “मुझे तुम्‍हारी जरूरत नहीं”, और सिर पैरों से नहीं कह सकता, “मुझे तुम्‍हारी जरूरत नहीं।” वरन् इसके विपरीत, शरीर के जो अंग सब से दुर्बल समझे जाते हैं, वे अधिक आवश्‍यक हैं। शरीर के जिन अंगों को हम कम आदरणीय समझते हैं, उनका अधिक आदर करते हैं और अपने अशोभनीय अंगों की लज्‍जा का अधिक ध्‍यान रखते हैं। हमारे शोभनीय अंगों को इसकी जरूरत नहीं होती। तो, जो अंग कम आदरणीय हैं, परमेश्‍वर ने उन्‍हें अधिक आदर दिलाते हुए शरीर का संगठन किया है। यह इसलिए हुआ कि शरीर में फूट उत्‍पन्न न हो, बल्‍कि उसके सभी अंग एक दूसरे का ध्‍यान रखें। यदि एक अंग को पीड़ा होती है, तो उसके साथ सभी अंगों को पीड़ा होती है और यदि एक अंग का सम्‍मान किया जाता है, तो उसके साथ सभी अंग आनन्‍द मनाते हैं। इसी तरह आप सब मिल कर मसीह की देह हैं और आप में से प्रत्‍येक उसका एक अंग है।

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