आप लोग मेरा अनुसरण करें, जिस तरह मैं मसीह का अनुसरण करता हूँ। आप मेरी हर बात का ध्यान रखते हैं और जो परम्पराएँ मैंने आपको सौंपी हैं, उन में दृढ़ बने रहते हैं। इसके लिए मैं आप लोगों की प्रशंसा करता हूँ। फिर भी मैं आप को यह बताना चाहता हूँ कि मसीह प्रत्येक पुरुष के शीर्ष हैं; पुरुष अपनी पत्नी का शीर्ष है, लेकिन मसीह का शीर्ष परमेश्वर ही है। जो पुरुष सिर ढक कर प्रार्थना या नबूवत करता है, वह अपने शीर्ष मसीह का अपमान करता है और जो स्त्री बिना सिर ढके प्रार्थना या नबूवत करती है, वह अपने शीर्ष पति का अपमान करती है; क्योंकि तब वह उस स्त्री जैसी है जिसका सिर मूंड़ा हुआ है। यदि कोई स्त्री अपना सिर नहीं ढकती, तो क्यों न वह अपना सिर मुँड़वा ले! यदि कटे हुए केश या मूँड़ा हुआ सिर स्त्री के लिए लज्जा की बात है, तो वह अपना सिर ढक ले। पुरुष को अपना सिर नहीं ढकना चाहिए; क्योंकि वह परमेश्वर का प्रतिरूप और उसकी महिमा का प्रतिबिन्ब है, जब कि स्त्री पुरुष की महिमा का प्रतिबिम्ब है। पुरुष स्त्री से नहीं बना, बल्कि स्त्री पुरुष से बनी और पुरुष की सृष्टि स्त्री के लिए नहीं हुई, बल्कि पुरुष के लिए स्त्री की सृष्टि हुई। इसलिए प्रार्थना में स्वर्गदूतों के कारण स्त्री को मान-मर्यादा का चिह्न अपने सिर पर पहनना चाहिए। फिर भी प्रभु में स्त्री के बिना पुरुष कुछ नहीं है और पुरुष के बिना स्त्री कुछ नहीं; क्योंकि जैसे पुरुष से स्त्री की सृष्टि हुई वैसे ही पुरुष का जन्म स्त्री से होता है, किन्तु सब का मूलस्रोत परमेश्वर है। आप स्वयं विचार करें, क्या यह उचित है कि स्त्री बिना सिर ढके परमेश्वर से प्रार्थना करे? क्या प्रकृति स्वयं आप को यह शिक्षा नहीं देती कि लम्बे केश रखना पुरुष के लिए लज्जा की बात है, जब कि स्त्री के लिए यह गौरव की बात है, क्योंकि उसे आवरण के रूप में लम्बे केश मिले हैं?
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