1 इतिहास 29:14-20

1 इतिहास 29:14-20 HINCLBSI

‘पर प्रभु, मैं कौन हूँ और मेरी जनता क्‍या है कि हम यों स्‍वेच्‍छा से तुझे भेंट चढ़ाने में समर्थ हो सकें? क्‍योंकि सब वस्‍तुओं का स्रोत तू ही है। हमने तुझे तेरी ही वस्‍तु अर्पित की है। हम अपने पूर्वजों के समान तेरे सम्‍मुख विदेशी और प्रवासी हैं। पृथ्‍वी पर हमारी आयु छाया के समान है। हमारा यहां स्‍थायी निवास-स्‍थान नहीं है। हे हमारे प्रभु परमेश्‍वर, यह सब भेंट, जो हमने तेरे पवित्र नाम की प्रतिष्‍ठा के लिए, तेरे भवन के निर्माण के लिए एकत्र की है, वह हमें तेरे ही हाथ से प्राप्‍त हुई थी। यह सब तेरा ही है। हे मेरे परमेश्‍वर! मैं जानता हूं, तू हृदय को परखता है। तू निष्‍कपट हृदय के व्यक्‍ति से प्रसन्न होता है। मैं निष्‍कपट हृदय से यह सब भेंट स्‍वेच्‍छापूर्वक तुझे अर्पित करता हूँ। अब मैंने तेरे निज लोगों को भी देखा जिन्‍होंने आनन्‍दपूर्वक स्‍वेच्‍छा से तुझे भेंट चढ़ाई। हमारे पूर्वजों के, अब्राहम, इसहाक और इस्राएल के प्रभु परमेश्‍वर! अपने निज लोगों के हृदय में ऐसे ही विचार और भावना सदा-सर्वदा बनाए रख, और अपनी ओर उनके हृदय को उन्‍मुख कर। मेरे पुत्र सुलेमान को यह वरदान दे: वह सम्‍पूर्ण हृदय से तेरी आज्ञाओं, सािक्षयों, संविधियों का पालन करे और उनके अनुसार आचरण करे। इस प्रकार वह इस भवन को बना सके जिसके लिए मैंने तैयारी की है।’ दाऊद समस्‍त धर्मसभा की ओर उन्‍मुख हुआ। उसने कहा, ‘अपने प्रभु परमेश्‍वर को धन्‍य कहो!’ तब धर्मसभा ने अपने पूर्वजों के प्रभु परमेश्‍वर को धन्‍य कहा। उन्‍होंने अपना सिर झुकाया, और प्रभु की आराधना की। उन्‍होंने राजा को साष्‍टांग प्रणाम किया।