राजा दाऊद ने समस्त धर्मसभा से यह कहा, ‘मेरे पुत्र सुलेमान को ही परमेश्वर ने चुना है। परन्तु सुलेमान अभी किशोर है। उसे इस प्रकार के काम का अनुभव नहीं है। प्रभु-भवन का निर्माण-कार्य भारी है। यह भवन मनुष्य के लिए नहीं वरन् प्रभु परमेश्वर के लिए बनेगा। मैंने अपने सामर्थ्य के अनुसार अपने परमेश्वर के भवन के लिए सोना-चांदी, लोहा-पीतल, इमारती लकड़ी, मणि-मुक्ता, संगमरमर आदि इकट्ठा कर दिया है: स्वर्ण-पात्रों के लिए सोना, चांदी के पात्रों के लिए चांदी, कांस्य-पात्रों के लिए कांस्य, लोहे की वस्तुओं के लिए लोहा, लकड़ी की वस्तुओं के लिए इमारती लकड़ी; इनके अतिरिक्त सुलेमानी पत्थर, जड़ने के लिए मणि, पच्चीकारी के लिए विभिन्न रंगों के नग, सब प्रकार का मणि-मुक्ता और संगमरमर भी एकत्र किया है। प्रभु के भवन में मेरी गहरी रुचि है, अपने परमेश्वर के भवन के प्रति मेरी अत्यधिक श्रद्धा है। मेरे पास सोना-चांदी का निजी कोष है। मैंने पवित्र मन्दिर के लिए जो कुछ एकत्र किया है, इसके अतिरिक्त मैं यह निजी कोष अपने प्रभु परमेश्वर के भवन-निर्माण के लिए अर्पित करता हूँ। सोना-चांदी की मात्रा यह है: एक लाख किलो सोना-अर्थात् ओपीर का विशिष्ट सोना; अढ़ाई लाख किलो शुद्ध चांदी। यह भवन की दीवार को मढ़ने के लिए है। कुशल कारीगरों के द्वारा तैयार की जाने वाली सोना-चांदी की वस्तुओं के लिए मैं अपने कोष का समस्त सोना-चांदी देता हूँ। अब कौन व्यक्ति आज खुले हाथ से प्रभु को भेंट अर्पित करेगा?’ तब पितृकुलों के नेताओं, कुलों के प्रशासकों, हजार-हजार सैनिकों के नायकों, सौ-सौ सैनिकों के नायकों तथा शासकीय अधिकारियों ने स्वेच्छा से भेंट चढ़ाई। उन्होंने परमेश्वर के भवन के सेवा-कार्य के लिए पौने दो लाख किलो सोना, दस हजार स्वर्ण मुद्राएं, साढ़े तीन लाख किलो चांदी, छ: लाख किलो कांस्य तथा पैंतीस लाख किलो लोहा चढ़ाया। जिन लोगों के पास मणि-मुक्ता थे, उन्होंने उनको प्रभु-भवन के कोषागार के अधिकारी गर्शोन वंशज यहीएल के हाथ में सौंप दिया। लोगों ने स्वेच्छा से चढ़ाई गई भेंट के लिए आनन्द मनाया; क्योंकि उन्होंने मुक्त हृदय से प्रभु को भेंट चढ़ाई थी। राजा दाऊद ने भी बहुत आनन्द मनाया।
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