इस रहस्य के खुलने के बाद येशु ने शिष्यों को देखकर कहा, “यह तो तुम्हें मालूम ही है कि दो दिन बाद फ़सह उत्सव है. इस समय मनुष्य के पुत्र को क्रूस पर चढ़ाए जाने के लिए सौंप दिया जाएगा.” दूसरी ओर प्रधान पुरोहित और वरिष्ठ नागरिक कायाफ़स नामक महापुरोहित के घर के आंगन में इकट्ठा हुए. उन्होंने मिलकर येशु को छलपूर्वक पकड़कर उनकी हत्या कर देने का विचार किया. वे यह विचार भी कर रहे थे: “यह फ़सह उत्सव के अवसर पर न किया जाए—कहीं इससे लोगों में बलवा न भड़क उठे.” जब येशु बैथनियाह गांव में शिमओन के घर पर थे—वही शिमओन, जिसे पहले कोढ़ रोग हुआ था, एक स्त्री उनके पास संगमरमर के बर्तन में कीमती इत्र लेकर आई. उसे उसने भोजन के लिए बैठे येशु के सिर पर उंडेल दिया. यह देख शिष्य गुस्सा हो कहने लगे, “यह फिज़ूलखर्ची किस लिए? यह इत्र तो ऊंचे दाम पर बिक सकता था और प्राप्त धनराशि गरीबों में बांटी जा सकती थी.” इस विषय को जानकर येशु ने उन्हें झिड़कते हुए कहा, “क्यों सता रहे हो इस स्त्री को? इसने मेरे हित में एक सराहनीय काम किया है. निर्धन तुम्हारे साथ हमेशा रहेंगे किंतु मैं तुम्हारे साथ हमेशा नहीं रहूंगा. मुझे मेरे अंतिम संस्कार के लिए तैयार करने के लिए इसने यह इत्र मेरे शरीर पर उंडेला है. सच तो यह है कि सारे जगत में जहां कहीं यह सुसमाचार प्रचार किया जाएगा, इस स्त्री के इस कार्य का वर्णन भी इसकी याद में किया जाएगा.” तब कारियोतवासी यहूदाह, जो बारह शिष्यों में से एक था, प्रधान पुरोहितों के पास गया और उनसे विचार-विमर्श करने लगा, “यदि मैं येशु को पकड़वा दूं तो आप मुझे क्या देंगे?” उन्होंने उसे गिन कर चांदी के तीस सिक्के दे दिए. उस समय से वह येशु को पकड़वाने के लिए सही अवसर की ताक में रहने लगा. अखमीरी रोटी के उत्सव के पहले दिन शिष्यों ने येशु के पास आकर पूछा, “हम आपके लिए फ़सह भोज की तैयारी कहां करें? आप क्या चाहते हैं?” येशु ने उन्हें निर्देश दिया, “नगर में एक व्यक्ति विशेष के पास जाना और उससे कहना, ‘गुरुवर ने कहा है, मेरा समय पास है. मुझे अपने शिष्यों के साथ आपके घर में फ़सह उत्सव मनाना है.’ ” शिष्यों ने वैसा ही किया, जैसा येशु ने निर्देश दिया था और उन्होंने फ़सह भोज तैयार किया.
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