मत्तियाह 15:29, 30, 31, 32, 33, 34, 35, 36, 37, 38, 39
मत्तियाह 15:29 HSS
वहां से येशु गलील झील के तट से होते हुए पर्वत पर चले गए और वहां बैठ गए.
मत्तियाह 15:30 HSS
एक बड़ी भीड़ उनके पास आ गयी. जिनमें लंगड़े, अपंग, अंधे, गूंगे और अन्य रोगी थे. लोगों ने इन्हें येशु के चरणों में लिटा दिया और येशु ने उन्हें स्वस्थ कर दिया.
मत्तियाह 15:31 HSS
गूंगों को बोलते, अपंगों को स्वस्थ होते, लंगड़ों को चलते तथा अंधों को देखते देख भीड़ चकित हो इस्राएल के परमेश्वर का गुणगान करने लगी.
मत्तियाह 15:32 HSS
येशु ने अपने शिष्यों को अपने पास बुलाकर कहा, “मुझे इन लोगों से सहानुभूति है क्योंकि ये मेरे साथ तीन दिन से हैं और इनके पास अब खाने को कुछ नहीं है. मैं इन्हें भूखा ही विदा करना नहीं चाहता—कहीं ये मार्ग में ही मूर्च्छित न हो जाएं.”
मत्तियाह 15:33 HSS
शिष्यों ने कहा, “इस निर्जन स्थान में इस बड़ी भीड़ की तृप्ति के लिए भोजन का प्रबंध कैसे होगा?”
मत्तियाह 15:34 HSS
येशु ने उनसे प्रश्न किया, “कितनी रोटियां हैं तुम्हारे पास?” “सात, और कुछ छोटी मछलियां,” उन्होंने उत्तर दिया.
मत्तियाह 15:35 HSS
येशु ने भीड़ को भूमि पर बैठ जाने का निर्देश दिया
मत्तियाह 15:36 HSS
और स्वयं उन्होंने सातों रोटियां और मछलियां लेकर उनके लिए परमेश्वर के प्रति आभार प्रकट करने के बाद उन्हें तोड़ा और शिष्यों को देते गए तथा शिष्य भीड़ को.
मत्तियाह 15:37 HSS
सभी ने खाया और तृप्त हुए और शिष्यों ने तोड़ी गई रोटियों के शेष टुकड़ों को इकट्ठा कर सात बड़े टोकरे भर लिए.
मत्तियाह 15:38 HSS
वहां जितनों ने भोजन किया था उनमें स्त्रियों और बालकों के अतिरिक्त पुरुषों ही की संख्या कोई चार हज़ार थी.
मत्तियाह 15:39 HSS
भीड़ को विदा कर येशु नाव में सवार होकर मगादान क्षेत्र में आए.