लूकॉस 1:5-25

लूकॉस 1:5-25 HSS

यहूदिया प्रदेश के राजा हेरोदेस के शासनकाल में अबीयाह दल के एक पुरोहित थे, जिनका नाम ज़करयाह था. उनकी पत्नी का नाम एलिज़ाबेथ था, जो हारोन की वंशज थी. वे दोनों ही परमेश्वर की दृष्टि में धर्मी तथा प्रभु के सभी आदेशों और नियमों के पालन में दोषहीन थे. उनकी कोई संतान न थी क्योंकि एलिज़ाबेथ बांझ थी और वे दोनों ही अब बूढ़े हो चुके थे. अपने दल की बारी के अनुसार जब ज़करयाह एक दिन परमेश्वर के सामने अपनी पुरोहित सेवा भेंट कर रहे थे, उन्हें पुरोहितों की रीति के अनुसार पर्ची द्वारा चुनाव कर प्रभु के मंदिर में प्रवेश करने और धूप जलाने का काम सौंपा गया था. धूप जलाने के समय बाहर सभी लोगों का विशाल समूह प्रार्थना कर रहा था. तभी ज़करयाह के सामने प्रभु का एक दूत प्रकट हुआ, जो धूप वेदी की दायीं ओर खड़ा था. स्वर्गदूत को देख ज़करयाह चौंक पड़े और भयभीत हो गए किंतु उस स्वर्गदूत ने उनसे कहा, “मत डरो, ज़करयाह! तुम्हारी प्रार्थना सुन ली गई है. तुम्हारी पत्नी एलिज़ाबेथ एक पुत्र जनेगी. तुम उसका नाम योहन रखना. तुम आनंदित और प्रसन्‍न होंगे तथा अनेक उसके जन्म के कारण आनंद मनाएंगे. यह बालक प्रभु की दृष्टि में महान होगा. वह दाखरस और मदिरा का सेवन कभी न करेगा तथा माता के गर्भ से ही पवित्र आत्मा से भरा हुआ होगा. वह इस्राएल के वंशजों में से अनेकों को प्रभु—उनके परमेश्वर—की ओर लौटा ले आएगा. वह एलियाह की आत्मा और सामर्थ्य में प्रभु के आगे चलनेवाला बनकर पिताओं के हृदय संतानों की ओर तथा अनाज्ञाकारियों को धर्मी के ज्ञान की ओर फेरेगा कि एक राष्ट्र को प्रभु के लिए तैयार करें.” ज़करयाह ने स्वर्गदूत से प्रश्न किया, “मैं कैसे विश्वास करूं—क्योंकि मैं ठहरा एक बूढ़ा व्यक्ति और मेरी पत्नी की आयु भी ढल चुकी है?” स्वर्गदूत ने उन्हें उत्तर दिया, “मैं गब्रिएल हूं. मैं नित परमेश्वर की उपस्थिति में रहता हूं. मुझे तुम्हें यह बताने और इस शुभ समाचार की घोषणा करने के लिए ही भेजा गया है. और सुनो! जब तक मेरी ये बातें पूरी न हो जाए, तब तक के लिए तुम गूंगे हो जाओगे, बोलने में असमर्थ, क्योंकि तुमने मेरे वचनों पर विश्वास नहीं किया, जिसका नियत समय पर पूरा होना निश्चित है.” बाहर ज़करयाह का इंतजार कर रहे लोग असमंजस में पड़ गए कि उन्हें मंदिर में इतनी देर क्यों हो रही है. जब ज़करयाह बाहर आए, वह उनसे बातें करने में असमर्थ रहे. इसलिये वे समझ गए कि ज़करयाह को मंदिर में कोई दर्शन प्राप्‍त हुआ है. वह उनसे संकेतों द्वारा बातचीत करते रहे और मौन बने रहे. अपने पुरोहित सेवाकाल की समाप्‍ति पर ज़करयाह घर लौट गए. उनकी पत्नी एलिज़ाबेथ ने गर्भधारण किया और यह कहते हुए पांच माह तक अकेले में रहीं, “प्रभु ने मुझ पर यह कृपादृष्टि की है और समूह में मेरी लज्जित स्थिति से मुझे उबार लिया है.”

निःशुल्क पठन योजनाएँ और भक्तिपूर्ण पठन योजनाएँ जो लूकॉस 1:5-25 से संबंधित हैं