उद्बोधक 5:8-15

उद्बोधक 5:8-15 HSS

अगर तुम अपने क्षेत्र में गरीब पर अत्याचार और उसे न्याय और धर्म से दूर होते देखो; तो हैरान न होना क्योंकि एक अधिकारी दूसरे अधिकारी के ऊपर होता है और उन पर भी एक बड़ा अधिकारी. वास्तव में जो राजा खेती को बढ़ावा देता है, वह सारे राज्य के लिए वरदान साबित होता है. जो धन से प्रेम रखता है, वह कभी धन से संतुष्ट न होगा; और न ही वह जो बहुत धन से प्रेम करता है. यह भी बेकार ही है. जब अच्छी वस्तुएं बढ़ती हैं, तो वे भी बढ़ते हैं, जो उनको इस्तेमाल करते हैं. उनके स्वामी को उनसे क्या लाभ? सिवाय इसके कि वह इन्हें देखकर संतुष्ट हो सके. मेहनत करनेवाले के लिए नींद मीठी होती है, चाहे उसने ज्यादा खाना खाया हो या कम, मगर धनी का बढ़ता हुआ धन उसे सोने नहीं देता. एक और बड़ी बुरी बात है जो मैंने सूरज के नीचे देखी: कि धनी ने अपनी धन-संपत्ति अपने आपको ही कष्ट देने के लिए ही कमाई थी. उसने धन-संपत्ति निष्फल जगह लगा दी है, वह धनी एक पुत्र का पिता बना. मगर उसकी सहायता के लिए कोई नहीं है. जैसे वह अपनी मां के गर्भ से नंगा आया था, उसे लौट जाना होगा, जैसे वह आया था. ठीक वैसे ही वह अपने हाथ में अपनी मेहनत के फल का कुछ भी नहीं ले जाएगा.