पेतरॉस को कारागार में रखा गया किंतु कलीसिया उनके लिए एक मन से प्रार्थना कर रही थी. उन पर मुकद्दमा चलाए जाने से एक रात पहले पेतरॉस दो सैनिकों के मध्य बेड़ियों से बंधे सोए हुए थे. और द्वार के सामने भी चौकीदार पहरा दे रहे थे. प्रभु का एक दूत एकाएक वहां प्रकट हुआ और वह कमरा ज्योति से भर गया. स्वर्गदूत ने पेतरॉस को थपथपा कर जगाया और कहा, “जल्दी उठिए!” तत्काल ही पेतरॉस की हथकड़ियां गिर पड़ीं. स्वर्गदूत ने पेतरॉस से कहा, “वस्त्र और जूतियां पहन लीजिए” पेतरॉस ने ऐसा ही किया. तब स्वर्गदूत ने उन्हें आज्ञा दी, “अब ऊपरी कपड़ा ओढ़ कर मेरे पीछे-पीछे आ जाइए.” पेतरॉस उसके पीछे कारागार से बाहर आ गए किंतु वह यह समझ नहीं पा रहे थे कि जो कुछ स्वर्गदूत द्वारा किया जा रहा था, वह सच्चाई थी या सिर्फ़ सपना. जब वे पहले और दूसरे पहरे को पार करके उस लोहे के दरवाज़े पर पहुंचे, जो नगर में खुलता है, वह द्वार अपने आप खुल गया और वे बाहर निकल गए. जब वे गली पार कर चुके तो अचानक स्वर्गदूत उन्हें छोड़कर चला गया. तब पेतरॉस की सुध-बुध लौटी और वह कह उठे, “अब मुझे सच्चाई का अहसास हो रहा है कि प्रभु ने ही अपने स्वर्गदूत को भेजकर मुझे हेरोदेस से और यहूदी लोगों की सारी उम्मीदों से छुड़ा लिया है.”
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