आंख हाथ से नहीं कह सकती, “मुझे तुम्हारी कोई ज़रूरत नहीं,” या हाथ-पैर से, “मुझे तुम्हारी ज़रूरत नहीं.” इसके विपरीत शरीर के वे अंग, जो दुर्बल मालूम होते हैं, बहुत ज़रूरी हैं. शरीर के जो अंग तुलना में कम महत्व के समझे जाते हैं, उन्हीं को हम अधिक महत्व देते हैं और तुच्छ अंगों को हम विशेष ध्यान रखते हुए ढांके रखते हैं, जबकि शोभनीय अंगों को इसकी कोई ज़रूरत नहीं किंतु परमेश्वर ने शरीर में अंगों को इस प्रकार बनाया है कि तुच्छ अंगों की महत्ता भी पहचानी जाए कि शरीर में कोई फूट न हो परंतु हर एक अंग एक दूसरे का ध्यान रखे. यदि एक अंग को पीड़ा होती है, तो उसके साथ सभी अंग पीड़ित होते हैं. यदि एक अंग को सम्मानित किया जाता है तो उसके साथ सभी अंग उसके आनंद में सहभागी होते हैं. तुम मसीह के शरीर हो और तुममें से हर एक इस शरीर का अंग है.
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