उन्होंने कुछ लोगों को प्रेरित, कुछ को नबी, कुछ को शुभ समाचार-प्रचारक और कुछ को धर्मपाल तथा शिक्षक होने का वरदान दिया। इस प्रकार उन्होंने सेवा-कार्य के लिए सन्तों को योग्य बनाया, जिससे मसीह की देह का निर्माण उस समय तक होता रहे, जब तक हम सब विश्वास तथा परमेश्वर के पुत्र के ज्ञान में एक नहीं हो जायें और मसीह की परिपूर्णता के अनुसार परिपक्वता की मात्रा में पूर्ण मनुष्यत्व प्राप्त न कर लें।