अंततः, तुम सब हृदय में मैत्री भाव बनाए रखो; सहानुभूति रखो; आपस में प्रेम रखो, करुणामय और नम्र बनो. बुराई का बदला बुराई से तथा निंदा का उत्तर निंदा से न दो; परंतु इसके विपरीत, उन्हें आशीष ही दो क्योंकि इसी के लिए तुम बुलाए गए हो कि तुम्हें मीरास में आशीष प्राप्त हो