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1 पतरस 2

2
चुना हुआ पत्थर और उसके चुने हुए लोग
1इसलिए सब प्रकार का बैर-भाव, छल, कपट, डाह और बदनामी को दूर करके, 2नये जन्मे हुए बच्चों के समान निर्मल आत्मिक दूध की लालसा करो#2:2 निर्मल आत्मिक दूध की लालसा करो: वचन का निर्मल दूध, जो बिना झूठ और चापलूसी के हैं।, ताकि उसके द्वारा उद्धार पाने के लिये बढ़ते जाओ, 3क्योंकि तुम ने प्रभु की भलाई का स्वाद चख लिया है। (भज. 34:8)
4उसके पास आकर, जिसे मनुष्यों ने तो निकम्मा ठहराया, परन्तु परमेश्वर के निकट चुना हुआ, और बहुमूल्य जीविता पत्थर है। 5तुम भी आप जीविते पत्थरों के समान आत्मिक घर बनते जाते हो, जिससे याजकों का पवित्र समाज बनकर, ऐसे आत्मिक बलिदान चढ़ाओ, जो यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर को ग्रहणयोग्य हो। 6इस कारण पवित्रशास्त्र में भी लिखा है,
“देखो, मैं सिय्योन में कोने के सिरे का चुना हुआ
और बहुमूल्य पत्थर धरता हूँ:
और जो कोई उस पर विश्वास करेगा,
वह किसी रीति से लज्जित नहीं होगा।” (यशा. 28:16)
7अतः तुम्हारे लिये जो विश्वास करते हो, वह तो बहुमूल्य है, पर जो विश्वास नहीं करते उनके लिये,
“जिस पत्थर को राजमिस्त्रियों ने निकम्मा ठहराया था,
वही कोने का सिरा हो गया,” (भज. 118:22, दानि. 2:34,35) 8और,
ठेस लगने का पत्थर
और ठोकर खाने की चट्टान हो गया है,”
क्योंकि वे तो वचन को न मानकर ठोकर खाते हैं और इसी के लिये वे ठहराए भी गए थे। (1 कुरि. 1:23, यशा. 8:14,15) 9पर तुम एक चुना हुआ वंश, और राज-पदधारी, याजकों का समाज, और पवित्र लोग, और परमेश्वर की निज प्रजा हो, इसलिए कि जिसने तुम्हें अंधकार में से अपनी अद्भुत ज्योति में बुलाया है, उसके गुण प्रगट करो। (निर्ग. 19:5,6, व्यव. 7:6, व्यव. 14:2, यशा. 9:2)
10तुम पहले तो कुछ भी नहीं थे,
पर अब परमेश्वर की प्रजा हो;
तुम पर दया नहीं हुई थी
पर अब तुम पर दया हुई है। (होशे 1:10, होशे 2:23)
परमेश्वर के लिये जीना
11हे प्रियों मैं तुम से विनती करता हूँ कि तुम अपने आपको परदेशी और यात्री जानकर उन सांसारिक अभिलाषाओं से जो आत्मा से युद्ध करती हैं, बचे रहो। (गला. 5:24, 1 पत. 4:2) 12अन्यजातियों में तुम्हारा चाल-चलन भला हो; इसलिए कि जिन-जिन बातों में वे तुम्हें कुकर्मी जानकर बदनाम करते हैं, वे तुम्हारे भले कामों को देखकर उन्हीं के कारण कृपादृष्टि के दिन परमेश्वर की महिमा करें। (मत्ती 5:16, तीतु. 2:7-8)
अधिकारियों के अधीन रहना
13प्रभु के लिये मनुष्यों के ठहराए हुए हर एक प्रबन्ध के अधीन रहो, राजा के इसलिए कि वह सब पर प्रधान है, 14और राज्यपालों के, क्योंकि वे कुकर्मियों को दण्ड देने और सुकर्मियों की प्रशंसा के लिये उसके भेजे हुए हैं। 15क्योंकि परमेश्वर की इच्छा यह है, कि तुम भले काम करने से निर्बुद्धि लोगों की अज्ञानता की बातों को बन्द कर दो। 16अपने आपको स्वतंत्र जानो#2:16 अपने आपको स्वतंत्र जानो: अर्थात्, वे अपने आपको स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में समझते थे, जैसे स्वतंत्रता का अधिकार हो। पर अपनी इस स्वतंत्रता को बुराई के लिये आड़ न बनाओ, परन्तु अपने आपको परमेश्वर के दास समझकर चलो। 17सब का आदर करो, भाइयों से प्रेम रखो, परमेश्वर से डरो, राजा का सम्मान करो। (नीति. 24:21, रोम. 12:10)
मसीह के दुःख का उदाहरण
18हे सेवकों, हर प्रकार के भय के साथ अपने स्वामियों के अधीन रहो, न केवल भलों और नम्रों के, पर कुटिलों के भी। 19क्योंकि यदि कोई परमेश्वर का विचार करके अन्याय से दुःख उठाता हुआ क्लेश सहता है, तो यह सुहावना है। 20क्योंकि यदि तुम ने अपराध करके घूँसे खाए और धीरज धरा, तो उसमें क्या बड़ाई की बात है? पर यदि भला काम करके दुःख उठाते हो और धीरज धरते हो, तो यह परमेश्वर को भाता है। 21और तुम इसी के लिये बुलाए भी गए हो क्योंकि मसीह भी तुम्हारे लिये दुःख उठाकर, तुम्हें एक आदर्श दे गया है कि तुम भी उसके पद-चिन्ह पर चलो।
22न तो उसने पाप किया,
और न उसके मुँह से छल की कोई बात निकली। (यशा. 53:9, 2 कुरि. 5:21)
23वह गाली सुनकर गाली नहीं देता था, और दुःख उठाकर किसी को भी धमकी नहीं देता था, पर अपने आपको सच्चे न्यायी के हाथ में सौंपता था। (यशा. 53:7, 1 पत. 4:19) 24वह आप ही हमारे पापों को अपनी देह पर लिए हुए#2:24 हमारे पापों को अपनी देह पर लिए हुए: प्रभु यीशु से इस तरह से व्यवहार किया गया जैसे कि वह एक पापी था, ताकि हमारे साथ ऐसा व्यवहार किया जाए जैसे कि हमने पाप नहीं किया हो जैसे कि हम धर्मी है। क्रूस पर चढ़ गया, जिससे हम पापों के लिये मर करके धार्मिकता के लिये जीवन बिताएँ। उसी के मार खाने से तुम चंगे हुए। (यशा. 53:4-5,12, गला. 3:13) 25क्योंकि तुम पहले भटकी हुई भेड़ों के समान थे, पर अब अपने प्राणों के रखवाले और चरवाहे के पास फिर लौट आ गए हो। (यशा. 53:6, यहे. 34:5-6)

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