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भजन संहिता 104:24-35

भजन संहिता 104:24-35 HINOVBSI

हे यहोवा, तेरे काम अनगिनित हैं! इन सब वस्तुओं को तू ने बुद्धि से बनाया है; पृथ्वी तेरी सम्पत्ति से परिपूर्ण है। इसी प्रकार समुद्र बड़ा और बहुत ही चौड़ा है, और उस में अनगिनित जलचर, जीव–जन्तु, क्या छोटे, क्या बड़े भरे पड़े हैं। उस में जहाज भी आते जाते हैं, और लिव्यातान भी जिसे तू ने वहाँ खेलने के लिये बनाया है। इन सब को तेरा ही आसरा है, कि तू उनका आहार समय पर दिया करे। तू उन्हें देता है, वे चुन लेते हैं; तू अपनी मुट्ठी खोलता है और वे उत्तम पदार्थों से तृप्‍त होते हैं। तू मुख फेर लेता है, और वे घबरा जाते हैं; तू उनकी साँस ले लेता है, और उनके प्राण छूट जाते हैं, और मिट्टी में फिर मिल जाते हैं। फिर तू अपनी ओर से साँस भेजता है, और वे सिरजे जाते हैं; और तू धरती को नया कर देता है। यहोवा की महिमा सदा काल बनी रहे, यहोवा अपने कामों से आनन्दित होवे! उसकी दृष्‍टि ही से पृथ्वी काँप उठती है, और उसके छूते ही पहाड़ों से धूआँ निकलता है। मैं जीवन भर यहोवा का गीत गाता रहूँगा; जब तक मैं बना रहूँगा तब तक अपने परमेश्‍वर का भजन गाता रहूँगा। मेरा ध्यान करना उसको प्रिय लगे, क्योंकि मैं तो यहोवा के कारण आनन्दित रहूँगा। पापी लोग पृथ्वी पर से मिट जाएँ, और दुष्‍ट लोग आगे को न रहें! हे मेरे मन, यहोवा को धन्य कह! याह की स्तुति करो!

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