YouVersion Logo
Search Icon

मरकुस 4:21-41

मरकुस 4:21-41 HINOVBSI

उसने उनसे कहा, “क्या दीये को इसलिये लाते हैं कि पैमाने या खाट के नीचे रखा जाए? क्या इसलिये नहीं कि दीवट पर रखा जाए? क्योंकि कोई वस्तु छिपी नहीं, परन्तु इसलिये है कि प्रगट हो जाए; और न कुछ गुप्‍त है, पर इसलिये है कि प्रगट हो जाए। यदि किसी के सुनने के कान हों, तो वह सुन ले।” फिर उसने उनसे कहा, “चौकस रहो कि क्या सुनते हो। जिस नाप से तुम नापते हो उसी से तुम्हारे लिये भी नापा जाएगा, और तुम को अधिक दिया जाएगा। क्योंकि जिसके पास है, उसको दिया जाएगा; और जिसके पास नहीं है, उससे वह भी जो उसके पास है, ले लिया जाएगा।” फिर उसने कहा, “परमेश्‍वर का राज्य ऐसा है, जैसे कोई मनुष्य भूमि पर बीज छींटे, और रात को सोए और दिन को जागे, और वह बीज ऐसे उगे और बढ़े कि वह न जाने। पृथ्वी आप से आप फल लाती है, पहले अंकुर, तब बाल, और तब बालों में तैयार दाना। परन्तु जब दाना पक जाता है, तब वह तुरन्त हँसिया लगाता है, क्योंकि कटनी आ पहुँची है।” फिर उसने कहा, “हम परमेश्‍वर के राज्य की उपमा किससे दें, और किस दृष्‍टान्त से उसका वर्णन करें? वह राई के दाने के समान है : जब भूमि में बोया जाता है तो भूमि के सब बीजों से छोटा होता है, परन्तु जब बोया गया, तो उगकर सब सागपात से बड़ा हो जाता है, और उसकी ऐसी बड़ी डालियाँ निकलती हैं कि आकाश के पक्षी उसकी छाया में बसेरा कर सकते हैं।” वह उन्हें इस प्रकार के बहुत से दृष्‍टान्त दे देकर उनकी समझ के अनुसार वचन सुनाता था, और बिना दृष्‍टान्त कहे वह उनसे कुछ भी नहीं कहता था; परन्तु एकान्त में वह अपने निज चेलों को सब बातों का अर्थ बताता था। उसी दिन जब साँझ हुई, तो उसने चेलों से कहा, “आओ, हम पार चलें।” और वे भीड़ को छोड़कर जैसा वह था, वैसा ही उसे नाव पर साथ ले चले; और उसके साथ और भी नावें थीं। तब बड़ी आँधी आई, और लहरें नाव पर यहाँ तक लगीं कि वह पानी से भरी जाती थी। पर वह आप पिछले भाग में गद्दी पर सो रहा था। तब उन्होंने उसे जगाकर उससे कहा, “हे गुरु, क्या तुझे चिन्ता नहीं कि हम नष्‍ट हुए जाते हैं?” तब उसने उठकर आँधी को डाँटा, और पानी से कहा, “शान्त रह, थम जा!” और आँधी थम गई और बड़ा चैन हो गया; और उनसे कहा, “तुम क्यों डरते हो? क्या तुम्हें अब तक विश्‍वास नहीं?” वे बहुत ही डर गए और आपस में बोले, “यह कौन है कि आँधी और पानी भी उसकी आज्ञा मानते हैं?”