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मत्ती 13:1-30

मत्ती 13:1-30 HINOVBSI

उसी दिन यीशु घर से निकलकर झील के किनारे जा बैठा। और उसके पास ऐसी बड़ी भीड़ इकट्ठी हुई कि वह नाव पर चढ़ गया, और सारी भीड़ किनारे पर खड़ी रही। और उसने उनसे दृष्‍टान्तों में बहुत सी बातें कहीं : “एक बोनेवाला बीज बोने निकला। बोते समय कुछ बीज मार्ग के किनारे गिरे और पक्षियों ने आकर उन्हें चुग लिया। कुछ बीज पथरीली भूमि पर गिरे, जहाँ उन्हें बहुत मिट्टी न मिली और गहरी मिट्टी न मिलने के कारण वे जल्द उग आए। पर सूरज निकलने पर वे जल गए, और जड़ न पकड़ने से सूख गए। कुछ बीज झाड़ियों में गिरे और झाड़ियों ने बढ़कर उन्हें दबा डाला। पर कुछ बीज अच्छी भूमि पर गिरे, और फल लाए, कोई सौ गुना, कोई साठ गुना, और कोई तीस गुना। जिस के कान हों वह सुन ले।” चेलों ने पास आकर उससे कहा, “तू लोगों से दृष्‍टान्तों में क्यों बातें करता है?” उस ने उत्तर दिया, “तुम को स्वर्ग के राज्य के भेदों की समझ दी गई है, पर उनको नहीं। क्योंकि जिसके पास है, उसे दिया जाएगा, और उसके पास बहुत हो जाएगा; पर जिसके पास कुछ नहीं है, उससे जो कुछ उसके पास है, वह भी ले लिया जाएगा। मैं उनसे दृष्‍टान्तों में इसलिये बातें करता हूँ कि वे देखते हुए नहीं देखते और सुनते हुए नहीं सुनते, और नहीं समझते। उनके विषय में यशायाह की यह भविष्यद्वाणी पूरी होती है : ‘तुम कानों से तो सुनोगे, पर समझोगे नहीं; और आँखों से तो देखोगे, पर तुम्हें न सूझेगा।* क्योंकि इन लोगों का मन मोटा हो गया है, और वे कानों से ऊँचा सुनते हैं और उन्होंने अपनी आँखें मूंद ली हैं; कहीं ऐसा न हो कि वे आँखों से देखें, और कानों से सुनें और मन से समझें, और फिर जाएँ, और मैं उन्हें चंगा करूँ।’ पर धन्य हैं तुम्हारी आँखें, कि वे देखती हैं; और तुम्हारे कान कि वे सुनते हैं।* क्योंकि मैं तुम से सच कहता हूँ कि बहुत से भविष्यद्वक्‍ताओं ने और धर्मियों ने चाहा कि जो बातें तुम देखते हो, देखें, पर न देखीं; और जो बातें तुम सुनते हो, सुनें, पर न सुनीं। “अब तुम बोनेवाले के दृष्‍टान्त का अर्थ सुनो : जो कोई राज्य का वचन सुनकर नहीं समझता, उसके मन में जो कुछ बोया गया था, उसे वह दुष्‍ट आकर छीन ले जाता है। यह वही है, जो मार्ग के किनारे बोया गया था। और जो पथरीली भूमि पर बोया गया, यह वह है, जो वचन सुनकर तुरन्त आनन्द के साथ मान लेता है। पर अपने में जड़ न रखने के कारण वह थोड़े ही दिन का है, और जब वचन के कारण क्लेश या उपद्रव होता है, तो तुरन्त ठोकर खाता है। जो झाड़ियों में बोया गया, यह वह है, जो वचन को सुनता है, पर इस संसार की चिन्ता और धन का धोखा वचन को दबाता है, और वह फल नहीं लाता। जो अच्छी भूमि में बोया गया, यह वह है, जो वचन को सुनकर समझता है, और फल लाता है; कोई सौ गुना, कोई साठ गुना, और कोई तीस गुना।” यीशु ने उन्हें एक और दृष्‍टान्त दिया : “स्वर्ग का राज्य उस मनुष्य के समान है जिसने अपने खेत में अच्छा बीज बोया। पर जब लोग सो रहे थे तो उसका शत्रु आकर गेहूँ के बीच जंगली बीज बोकर चला गया। जब अंकुर निकले और बालें लगीं, तो जंगली दाने के पौधे भी दिखाई दिए। इस पर गृहस्थ के दासों ने आकर उससे कहा, ‘हे स्वामी, क्या तू ने अपने खेत में अच्छा बीज न बोया था? फिर जंगली दाने के पौधे उसमें कहाँ से आए?’ उसने उनसे कहा, ‘यह किसी शत्रु का काम है।’ दासों ने उससे कहा, ‘क्या तेरी इच्छा है, कि हम जाकर उनको बटोर लें?’ उसने कहा, ‘नहीं, ऐसा न हो कि जंगली दाने के पौधे बटोरते हुए तुम उनके साथ गेहूँ भी उखाड़ लो। कटनी तक दोनों को एक साथ बढ़ने दो, और कटनी के समय मैं काटनेवालों से कहूँगा कि पहले जंगली दाने के पौधे बटोरकर जलाने के लिए उनके गट्ठे बाँध लो, और गेहूँ को मेरे खत्ते में इकट्ठा करो’।”