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लूका 23:26-56

लूका 23:26-56 HINOVBSI

जब वे उसे लिए जा रहे थे, तो उन्होंने शमौन नामक एक कुरेनी को जो गाँव से आ रहा था, पकड़कर उस पर क्रूस लाद दिया कि उसे यीशु के पीछे–पीछे ले चले। लोगों की बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली और उसमें बहुत सी स्त्रियाँ भी थीं जो उसके लिये छाती–पीटती और विलाप करती थीं। यीशु ने उनकी ओर मुड़कर कहा, “हे यरूशलेम की पुत्रियो, मेरे लिये मत रोओ; परन्तु अपने और अपने बालकों के लिये रोओ। क्योंकि देखो, वे दिन आते हैं, जिनमें लोग कहेंगे, ‘धन्य हैं वे जो बाँझ हैं और वे गर्भ जो न जने और वे स्तन जिन्होंने दूध न पिलाया।’ उस समय ‘वे पहाड़ों से कहने लगेंगे कि हम पर गिरो, और टीलों से कि हमें ढाँप लो।’ क्योंकि जब वे हरे पेड़ के साथ ऐसा करते हैं, तो सूखे के साथ क्या कुछ न किया जाएगा?” वे अन्य दो मनुष्यों को भी जो कुकर्मी थे उसके साथ घात करने को ले चले। जब वे उस जगह जिसे खोपड़ी कहते हैं पहुँचे, तो उन्होंने वहाँ उसे और उन कुकर्मियों को भी, एक को दाहिनी और दूसरे को बाईं ओर क्रूसों पर चढ़ाया। तब यीशु ने कहा, “हे पिता, इन्हें क्षमा कर, क्योंकि ये जानते नहीं कि क्या कर रहे हैं।” और उन्होंने चिट्ठियाँ डालकर उसके कपड़े बाँट लिए। लोग खड़े–खड़े देख रहे थे, और सरदार भी ठट्ठा कर करके कहते थे : “इसने दूसरों को बचाया, यदि यह परमेश्‍वर का मसीह है, और उसका चुना हुआ है, तो अपने आप को बचा ले।” सिपाही भी पास आकर और सिरका देकर उसका ठट्ठा करके कहते थे, “यदि तू यहूदियों का राजा है, तो अपने आप को बचा!” और उसके ऊपर एक दोष–पत्र भी लगा था : “यह यहूदियों का राजा है।” जो कुकर्मी वहाँ लटकाए गए थे, उनमें से एक ने उसकी निन्दा करके कहा, “क्या तू मसीह नहीं? तो फिर अपने आप को और हमें बचा!” इस पर दूसरे ने उसे डाँटकर कहा, “क्या तू परमेश्‍वर से भी नहीं डरता? तू भी तो वही दण्ड पा रहा है, और हम तो न्यायानुसार दण्ड पा रहे हैं, क्योंकि हम अपने कामों का ठीक फल पा रहे हैं; पर इसने कोई अनुचित काम नहीं किया।” तब उसने कहा, “हे यीशु, जब तू अपने राज्य में आए, तो मेरी सुधि लेना।” उसने उससे कहा, “मैं तुझ से सच कहता हूँ कि आज ही तू मेरे साथ स्वर्गलोक में होगा।” लगभग दो पहर से तीसरे पहर तक सारे देश में अन्धियारा छाया रहा, और सूर्य का उजियाला जाता रहा, और मन्दिर का परदा बीच से फट गया, और यीशु ने बड़े शब्द से पुकार कर कहा, “हे पिता, मैं अपनी आत्मा तेरे हाथों में सौंपता हूँ।” और यह कहकर प्राण छोड़ दिए। सूबेदार ने, जो कुछ हुआ था देखकर परमेश्‍वर की बड़ाई की, और कहा, “निश्‍चय यह मनुष्य धर्मी था।” और भीड़ जो यह देखने को इकट्ठी हुई थी, इस घटना को देखकर छाती पीटती हुई लौट गई। पर उसके सब जान पहचान, और जो स्त्रियाँ गलील से उसके साथ आई थीं, दूर खड़ी हुई यह सब देख रहीं थीं। वहाँ यूसुफ नाम का महासभा का एक सदस्य था जो सज्जन और धर्मी पुरुष था और उनकी योजना और उनके इस काम से प्रसन्न न था। वह यहूदियों के नगर अरिमतिया का रहनेवाला और परमेश्‍वर के राज्य की बाट जोहनेवाला था। उसने पिलातुस के पास जाकर यीशु का शव माँगा; और उसे उतारकर मलमल की चादर में लपेटा, और एक कब्र में रखा, जो चट्टान में खुदी हुई थी; और उसमें कोई कभी न रखा गया था। वह तैयारी का दिन था, और सब्त का दिन आरम्भ होने पर था। उन स्त्रियों ने जो उसके साथ गलील से आई थीं, पीछे पीछे जाकर उस कब्र को देखा, और यह भी कि उसका शव किस रीति से रखा गया है। तब उन्होंने लौटकर सुगन्धित वस्तुएँ और इत्र तैयार किया; और सब्त के दिन उन्होंने आज्ञा के अनुसार विश्राम किया।

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