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अय्यूब 22

22
तृतीय संवाद
(22:1—27:23)
एलीपज का आरोप
1तब तेमानी एलीपज ने कहा,
2“क्या मनुष्य से परमेश्‍वर को लाभ
पहुँच सकता है?
जो बुद्धिमान है, वह अपने ही लाभ का कारण
होता है।
3क्या तेरे धर्मी होने से सर्वशक्‍तिमान सुख पा
सकता है?
तेरी चाल की खराई से क्या उसे कुछ लाभ
हो सकता है?#अय्यू 35:6–8
4वह तो तुझे डाँटता है, और तुझ से मुक़द्दमा
लड़ता है,
तो क्या यह तेरी भक्‍ति के कारण है?
5क्या तेरी बुराई बहुत नहीं?
तेरे अधर्म के कामों का कुछ अन्त नहीं।
6तू ने अपने भाई का बन्धक अकारण
रख लिया है,
और नंगे के वस्त्र उतार लिये हैं।
7थके हुए को तू ने पानी न पिलाया,
और भूखे को रोटी देने से इन्कार किया।
8जो बलवान था उसी को भूमि मिली,
और जिस पुरुष की प्रतिष्‍ठा थी, वही
उसमें बस गया।
9तू ने विधवाओं को छूछे हाथ लौटा दिया,
और अनाथों की बाहें तोड़ डालीं।
10इस कारण तेरे चारों ओर फन्दे लगे हैं,
और अचानक डर के मारे तू घबरा रहा है।
11क्या तू अन्धियारे को नहीं देखता,
और उस बाढ़ को जिसमें तू डूब रहा है?
12“क्या परमेश्‍वर स्वर्ग के ऊँचे स्थान में
नहीं है?
ऊँचे से ऊँचे तारों को देख कि वे कितने
ऊँचे हैं।
13फिर तू कहता है, ‘परमेश्‍वर क्या जानता है?
क्या वह घोर अन्धकार की आड़ में होकर
न्याय कर सकता है?
14काली घटाओं से वह ऐसा छिपा रहता है
कि वह कुछ नहीं देख सकता,
वह तो आकाशमण्डल ही के ऊपर चलता
फिरता है।’
15क्या तू उस पुराने रास्ते को पकड़े रहेगा,
जिस पर अनर्थ करनेवाले चलते हैं?
16वे अपने समय से पहले उठा लिए गए
और उनके घर की नींव नदी बहा ले गई।
17उन्होंने परमेश्‍वर से कहा था, ‘हम से दूर
हो जा;’
और यह कि, ‘सर्वशक्‍तिमान हमारा#22:17 मूल में, उनका क्या
कर सकता है?’
18तौभी उसने उनके घर अच्छे अच्छे पदार्थों
से भर दिए —
परन्तु दुष्‍ट लोगों का विचार मुझ से दूर रहे।
19धर्मी लोग देखकर आनन्दित होते हैं;
और निर्दोष लोग उनकी हँसी करते हैं,
20‘जो हमारे विरुद्ध उठे थे, नि:सन्देह मिट गए
और उनका बड़ा धन आग का कौर हो
गया है।’
21“उस से मेलमिलाप कर तब तुझे
शान्ति मिलेगी;
और इससे तेरी भलाई होगी।
22उसके मुँह से शिक्षा सुन ले,
और उसके वचन अपने मन में रख।
23यदि तू सर्वशक्‍तिमान की ओर फिरके
समीप जाए,
और अपने डेरे से कुटिल काम दूर करे,
तो तू बन जाएगा।
24तू अपनी अनमोल वस्तुओं को#22:24 मूल में, खान से निकला हुआ सोना चाँदी धूल पर, वरन्
ओपीर का कुन्दन भी नालों के पत्थरों में
डाल दे,
25तब सर्वशक्‍तिमान आप तेरी अनमोल वस्तु#22:25 मूल में, तेरी धातु
और तेरे लिये चमकीली चाँदी होगा।
26तब तू सर्वशक्‍तिमान से सुख पाएगा,
और परमेश्‍वर की ओर अपना मुँह बेखटके
उठा सकेगा।
27तू उससे प्रार्थना करेगा,
और वह तेरी सुनेगा;
और तू अपनी मन्नतों को पूरी करेगा।
28जो बात तू ठाने वह तुझ से बन भी पड़ेगी,
और तेरे मार्गों पर प्रकाश रहेगा।
29चाहे दुर्भाग्य हो#22:29 मूल में, वे नीचे होएँ तौभी तू कहेगा कि
सौभाग्य होगा#22:29 मूल में, ऊँचाई ,
क्योंकि वह नम्र मनुष्य को बचाता है।#22:29 अथवा, क्योंकि परमेश्‍वर घमण्डी को नीचा दिखाता है, परन्तु वह नम्र मनुष्य को बचाता है
30वरन् जो निर्दोष न हो उसको भी वह
बचाता है;
तेरे शुद्ध कामों#22:30 मूल में, हाथों के कारण तू छुड़ाया
जाएगा।”

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