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इफिसियों 4:17-28

इफिसियों 4:17-28 HINOVBSI

इसलिये मैं यह कहता हूँ और प्रभु में आग्रह करता हूँ कि जैसे अन्यजातीय लोग अपने मन की अनर्थ रीति पर चलते हैं, तुम अब से फिर ऐसे न चलो। क्योंकि उनकी बुद्धि अन्धेरी हो गई है, और उस अज्ञानता के कारण जो उनमें है और उनके मन की कठोरता के कारण वे परमेश्‍वर के जीवन से अलग किए हुए हैं; और वे सुन्न होकर लुचपन में लग गए हैं कि सब प्रकार के गन्दे काम लालसा से किया करें। पर तुम ने मसीह की ऐसी शिक्षा नहीं पाई। वरन् तुम ने सचमुच उसी की सुनी और, जैसा यीशु में सत्य है, उसी में सिखाए भी गए कि तुम पिछले चालचलन के पुराने मनुष्यत्व को जो भरमानेवाली अभिलाषाओं के अनुसार भ्रष्‍ट होता जाता है, उतार डालो और अपने मन के आत्मिक स्वभाव में नये बनते जाओ, और नये मनुष्यत्व को पहिन लो जो परमेश्‍वर के अनुरूप सत्य की धार्मिकता और पवित्रता में सृजा गया है। इस कारण झूठ बोलना छोड़कर हर एक अपने पड़ोसी से सच बोले, क्योंकि हम आपस में एक दूसरे के अंग हैं। क्रोध तो करो, पर पाप मत करो; सूर्य अस्त होने तक तुम्हारा क्रोध न रहे, और न शैतान को अवसर दो। चोरी करनेवाला फिर चोरी न करे, वरन् भले काम करने में अपने हाथों से परिश्रम करे, इसलिये कि जिसे प्रयोजन हो उसे देने को उसके पास कुछ हो।