प्रेरितों 5:1-21
प्रेरितों 5:1-21 HINOVBSI
हनन्याह नामक एक मनुष्य और उसकी पत्नी, सफीरा ने कुछ भूमि बेची और उसके दाम में से कुछ रख छोड़ा; और यह बात उसकी पत्नी भी जानती थी, और उसका एक भाग लाकर प्रेरितों के पाँवों के आगे रख दिया। पतरस ने कहा, “हे हनन्याह! शैतान ने तेरे मन में यह बात क्यों डाली कि तू पवित्र आत्मा से झूठ बोले, और भूमि के दाम में से कुछ रख छोड़े? जब तक वह तेरे पास रही, क्या तेरी न थी? और जब बिक गई तो क्या तेरे वश में न थी? तू ने यह बात अपने मन में क्यों विचारी? तू मनुष्यों से नहीं, परन्तु परमेश्वर से झूठ बोला है।” ये बातें सुनते ही हनन्याह गिर पड़ा और प्राण छोड़ दिए, और सब सुननेवालों पर बड़ा भय छा गया। फिर जवानों ने उठकर उसकी अर्थी बनाई और बाहर ले जाकर गाड़ दिया। लगभग तीन घंटे के बाद उसकी पत्नी, जो कुछ हुआ था न जानकर, भीतर आई। तब पतरस ने उससे कहा, “मुझे बता क्या तुम ने वह भूमि इतने ही में बेची थी?” उसने कहा, “हाँ, इतने ही में।” पतरस ने उससे कहा, “यह क्या बात है कि तुम दोनों ने प्रभु के आत्मा की परीक्षा के लिये एका किया? देख, तेरे पति के गाड़नेवाले द्वार ही पर खड़े हैं, और तुझे भी बाहर ले जाएँगे।” तब वह तुरन्त उसके पाँवों पर गिर पड़ी, और प्राण छोड़ दिए; और जवानों ने भीतर आकर उसे मरा पाया, और बाहर ले जाकर उसके पति के पास गाड़ दिया। सारी कलीसिया पर और इन बातों के सब सुननेवालों पर बड़ा भय छा गया। प्रेरितों के हाथों से बहुत चिह्न और अद्भुत काम लोगों के बीच में दिखाए जाते थे, और वे सब एक चित्त होकर सुलैमान के ओसारे में इकट्ठे हुआ करते थे। परन्तु औरों में से किसी को यह हियाव न होता था कि उनमें जा मिले; तौभी लोग उनकी बड़ाई करते थे। विश्वास करनेवाले बहुत से पुरुष और स्त्रियाँ प्रभु की कलीसिया में बड़ी संख्या में मिलते रहे। यहाँ तक कि लोग बीमारों को सड़कों पर ला लाकर, खाटों और खटोलों पर लिटा देते थे कि जब पतरस आए, तो उसकी छाया ही उनमें से किसी पर पड़ जाए। यरूशलेम के आसपास के नगरों से भी बहुत लोग बीमारों और अशुद्ध आत्माओं के सताए हुओं को ला लाकर, इकट्ठे होते थे, और सब अच्छे कर दिए जाते थे। तब महायाजक और उसके सब साथी जो सदूकियों के पंथ के थे, डाह से भर उठे और प्रेरितों को पकड़कर बन्दीगृह में बन्द कर दिया। परन्तु रात को प्रभु के एक स्वर्गदूत ने बन्दी–गृह के द्वार खोलकर उन्हें बाहर लाकर कहा, “जाओ, मन्दिर में खड़े होकर इस जीवन की सब बातें लोगों को सुनाओ।” वे यह सुनकर भोर होते ही मन्दिर में जाकर उपदेश देने लगे। तब महायाजक और उसके साथियों ने आकर महासभा को और इस्राएलियों के सब पुरनियों को इकट्ठे किया, और बन्दीगृह में कहला भेजा कि उन्हें लाएँ।