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प्रेरितों 1

1
परिचय
1हे थियुफिलुस, मैं ने पहली पुस्तिका उन सब बातों के विषय में लिखी#लूका 1:1–4 जो यीशु आरम्भ से करता और सिखाता रहा, 2उस दिन तक जब तक वह उन प्रेरितों को जिन्हें उसने चुना था पवित्र आत्मा के द्वारा आज्ञा देकर ऊपर उठाया न गया। 3उसने दु:ख उठाने के बाद बहुत से पक्‍के प्रमाणों से अपने आप को उन्हें जीवित दिखाया, और चालीस दिन तक वह उन्हें दिखाई देता रहा, और परमेश्‍वर के राज्य की बातें करता रहा। 4और उनसे मिलकर उन्हें आज्ञा दी, “यरूशलेम को न छोड़ो, परन्तु पिता की उस प्रतिज्ञा के पूरे होने की बाट जोहते रहो,#लूका 24:49 जिसकी चर्चा तुम मुझ से सुन चुके हो। 5क्योंकि यूहन्ना ने तो पानी में बपतिस्मा दिया है परन्तु थोड़े दिनों के बाद तुम पवित्र आत्मा से#1:5 यू० में बपतिस्मा पाओगे।#मत्ती 3:11; मरकुस 1:8; लूका 3:16; यूह 1:33
यीशु का स्वर्गारोहण
6अत: उन्होंने इकट्ठे होकर उससे पूछा, “हे प्रभु, क्या तू इसी समय इस्राएल को राज्य फेर देगा?” 7उसने उनसे कहा, “उन समयों या कालों को जानना, जिनको पिता ने अपने ही अधिकार में रखा है, तुम्हारा काम नहीं। 8परन्तु जब पवित्र आत्मा तुम पर आएगा तब तुम सामर्थ्य पाओगे; और यरूशलेम और सारे यहूदिया और सामरिया में, और पृथ्वी की छोर तक मेरे गवाह होगे।”#मत्ती 28:19; मरकुस 16:15; लूका 24:47,48 9यह कहकर वह उन के देखते–देखते ऊपर उठा लिया गया, और बादल ने उसे उनकी आँखों से छिपा लिया।#मरकुस 16:19; लूका 24:50,51 10उसके जाते समय जब वे आकाश की ओर ताक रहे थे, तो देखो, दो पुरुष श्‍वेत वस्त्र पहिने हुए उन के पास आ खड़े हुए, 11और उनसे कहा, “हे गलीली पुरुषो, तुम क्यों खड़े आकाश की ओर देख रहे हो? यही यीशु, जो तुम्हारे पास से स्वर्ग पर उठा लिया गया है, जिस रीति से तुम ने उसे स्वर्ग को जाते देखा है उसी रीति से वह फिर आएगा।”
मत्तियाह को यहूदा का पद मिलना
12तब वे जैतून नामक पहाड़ से जो यरूशलेम के निकट एक सब्त के दिन की दूरी पर है, यरूशलेम को लौटे। 13जब वे वहाँ पहुँचे तो उस अटारी पर गए, जहाँ पतरस और यूहन्ना और याकूब और अन्द्रियास और फिलिप्पुस और थोमा और बरतुल्मै और मत्ती और हलफई का पुत्र याकूब और शमौन जेलोतेस और याकूब का पुत्र यहूदा#मत्ती 10:2–4; मरकुस 3:16–19; लूका 6:14–16 रहते थे। 14ये सब कई स्त्रियों और यीशु की माता मरियम और उसके भाइयों के साथ एक चित्त होकर प्रार्थना में लगे रहे।
15उन्हीं दिनों में पतरस भाइयों के बीच में जो एक सौ बीस व्यक्‍ति के लगभग थे, खड़ा होकर कहने लगा, 16“हे भाइयो, अवश्य था कि पवित्रशास्त्र का वह लेख पूरा हो जो पवित्र आत्मा ने दाऊद के मुख से यहूदा के विषय में, जो यीशु के पकड़नेवालों का अगुवा था, पहले से कहा था। 17क्योंकि वह तो हम में गिना गया, और इस सेवकाई में सहभागी हुआ। 18(उसने अधर्म की कमाई से एक खेत मोल लिया, और सिर के बल गिरा और उसका पेट फट गया और उसकी सब अन्तड़ियाँ निकल पड़ीं। 19इस बात को यरूशलेम के सब रहनेवाले जान गए, यहाँ तक कि उस खेत का नाम उनकी भाषा में ‘हकलदमा’ अर्थात् ‘लहू का खेत’ पड़ गया।)#मत्ती 27:3–8 20भजन संहिता में लिखा है,
‘उसका घर उजड़ जाए,
और उसमें कोई न बसे,’
और ‘उसका पद कोई दूसरा ले ले।’#भजन 69:25; 109:8
21इसलिये जितने दिन तक प्रभु यीशु हमारे साथ आता जाता रहा–अर्थात् यूहन्ना के बपतिस्मा से लेकर उसके हमारे पास से उठाए जाने तक– जो लोग बराबर हमारे साथ रहे, 22उचित है कि उनमें से एक व्यक्‍ति हमारे साथ उसके जी उठने का गवाह हो जाए।#मत्ती 3:16; मरकुस 1:9; 16:19; लूका 3:21; 24:51 23तब उन्होंने दो को खड़ा किया, एक यूसुफ को जो बर–सबा कहलाता है, जिसका उपनाम यूसतुस है, दूसरा मत्तियाह को, 24और यह प्रार्थना की, “हे प्रभु, तू जो सब के मन जानता है, यह प्रगट कर कि इन दोनों में से तू ने किसको चुना है, 25कि वह इस सेवकाई और प्रेरिताई का पद ले, जिसे यहूदा छोड़कर अपने स्थान को चला गया।” 26तब उन्होंने उनके बारे में चिट्ठियाँ डालीं, और चिट्ठी मत्तियाह के नाम पर निकली। अत: वह उन ग्यारह प्रेरितों के साथ गिना गया।

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