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1 राजाओं 22

22
मीकायाह नबी की अहाब को चेतावनी
(2 इति 18:2–27)
1तीन वर्ष तक अरामी और इस्राएली बिना युद्ध के रहे। 2तीसरे वर्ष में यहूदा का राजा यहोशापात इस्राएल के राजा के पास गया। 3तब इस्राएल के राजा ने अपने कर्मचारियों से कहा, “क्या तुम को मालूम है कि गिलाद का रामोत हमारा है? फिर हम क्यों चुपचाप रहते और उसे अराम के राजा के हाथ से क्यों नहीं छीन लेते हैं?” 4और उसने यहोशापात से पूछा, “क्या तू मेरे संग गिलाद के रामोत से लड़ने के लिये जाएगा?” यहोशापात ने इस्राएल के राजा को उत्तर दिया, “जैसा तू है वैसा मैं भी हूँ। जैसी तेरी प्रजा है वैसी ही मेरी भी प्रजा है, और जैसे तेरे घोड़े हैं वैसे ही मेरे भी घोड़े हैं।”
5फिर यहोशापात ने इस्राएल के राजा से कहा, “आज यहोवा की इच्छा मालूम कर ले।” 6तब इस्राएल के राजा ने नबियों को जो कोई चार सौ पुरुष थे इकट्ठा करके उनसे पूछा, “क्या मैं गिलाद के रामोत से युद्ध करने के लिये चढ़ाई करूँ, या रुका रहूँ?” उन्होंने उत्तर दिया, “चढ़ाई कर : क्योंकि प्रभु उसको राजा के हाथ में कर देगा।” 7परन्तु यहोशापात ने पूछा, “क्या यहाँ यहोवा का और भी कोई नबी नहीं है जिससे हम पूछ लें?” 8इस्राएल के राजा ने यहोशापात से कहा, “हाँ, यिम्‍ला का पुत्र मीकायाह एक पुरुष और है जिसके द्वारा हम यहोवा से पूछ सकते हैं? परन्तु मैं उससे घृणा करता हूँ, क्योंकि वह मेरे विषय कल्याण की नहीं वरन् हानि ही की भविष्यद्वाणी करता है।” 9यहोशापात ने कहा, “राजा ऐसा न कहे।” तब इस्राएल के राजा ने एक हाकिम को बुलवा कर कहा, “यिम्‍ला के पुत्र मीकायाह को फुर्ती से ले आ।” 10इस्राएल का राजा और यहूदा का राजा यहोशापात, अपने अपने राजवस्त्र पहिने हुए शोमरोन के फाटक में एक खुले स्थान में अपने अपने सिंहासन पर विराजमान थे और सब भविष्यद्वक्‍ता उनके सम्मुख भविष्यद्वाणी कर रहे थे। 11तब कनाना के पुत्र सिदकिय्याह ने लोहे के सींग बनाकर कहा, “यहोवा यों कहता है, ‘इनसे तू अरामियों को मारते मारते नष्‍ट कर डालेगा।’ ” 12और सब नबियों ने इसी आशय की भविष्यद्वाणी करके कहा, “गिलाद के रामोत पर चढ़ाई कर और तू कृतार्थ हो; क्योंकि यहोवा उसे राजा के हाथ में कर देगा।”
13जो दूत मीकायाह को बुलाने गया था उसने उससे कहा, “सुन, भविष्यद्वक्‍ता एक मुँह से राजा के विषय शुभ वचन कहते हैं तो तेरी बातें उनकी सी हों; तू भी शुभ वचन कहना।” 14मीकायाह ने कहा, “यहोवा के जीवन की शपथ जो कुछ यहोवा मुझ से कहे, वही मैं कहूँगा।” 15जब वह राजा के पास आया, तब राजा ने उससे पूछा, “हे मीकायाह! क्या हम गिलाद के रामोत से युद्ध करने के लिये चढ़ाई करें या रुके रहें?” उसने उसको उत्तर दिया, “हाँ चढ़ाई कर और तू कृतार्थ हो; और यहोवा उसको राजा के हाथ में कर दे।” 16राजा ने उससे कहा, “मुझे कितनी बार तुझे शपथ धराकर चिताना होगा, कि तू यहोवा का स्मरण करके मुझ से सच ही कह।” 17मीकायाह ने कहा, “मुझे समस्त इस्राएल बिना चरवाहे की भेड़–बकरियों के समान पहाड़ों पर, तित्तर बित्तर देख पड़ा,#गिन 27:17; मत्ती 9:36; मरकुस 6:34 और यहोवा का यह वचन आया, ‘वे तो अनाथ हैं; अतएव वे अपने अपने घर कुशल क्षेम से लौट जाएँ।’ ” 18तब इस्राएल के राजा ने यहोशापात से कहा, “क्या मैं ने तुझ से न कहा था कि वह मेरे विषय कल्याण की नहीं हानि ही की भविष्यद्वाणी करेगा।” 19मीकायाह ने कहा, “इस कारण तू यहोवा का यह वचन सुन! मुझे सिंहासन पर विराजमान यहोवा और उसके पास दाहिने बाँयें खड़ी हुई स्वर्ग की समस्त सेना दिखाई दी है।#यशा 6:1; अय्यू 1:6 20तब यहोवा ने पूछा, ‘अहाब को कौन ऐसा बहकाएगा कि वह गिलाद के रामोत पर चढ़ाई करके खेत आए?’ तब किसी ने कुछ, और किसी ने कुछ कहा। 21अन्त में एक आत्मा पास आकर यहोवा के सम्मुख खड़ी हुई, और कहने लगी, ‘मैं उसको बहकाऊँगी’ : यहोवा ने पूछा, ‘किस उपाय से?’ 22उसने कहा, ‘मैं जाकर उसके सब भविष्यद्वक्‍ताओं में पैठकर उनसे झूठ बुलवाऊँगी#22:22 मूल में, झूठा आत्मा हूँगा ।’ यहोवा ने कहा, ‘तेरा उसको बहकाना सफल होगा, जाकर ऐसा ही कर।’ 23तो अब सुन यहोवा ने तेरे इन सब भविष्यद्वक्‍ताओं के मुँह में एक झूठ बोलनेवाली आत्मा पैठाई है, और यहोवा ने तेरे विषय हानि की बात कही है।”
24तब कनाना के पुत्र सिदकिय्याह ने मीकायाह के निकट जा, उसके गाल पर थप्पड़ मारकर पूछा, “यहोवा का आत्मा मुझे छोड़कर तुझ से बातें करने को किधर गया?” 25मीकायाह ने कहा, “जिस दिन तू छिपने के लिये कोठरी से कोठरी में भागेगा, तब तुझे ज्ञात होगा।” 26तब इस्राएल के राजा ने कहा, “मीकायाह को नगर के हाकिम आमोन और योआश राजकुमार के पास ले जा; 27और उनसे कह, ‘राजा यों कहता है कि इसको बन्दीगृह में डालो, और जब तक मैं कुशल से न आऊँ, तब तक इसे दु:ख की रोटी और पानी दिया करो।’ ” 28और मीकायाह ने कहा, “यदि तू कभी कुशल से लौटे, तो जान कि यहोवा ने मेरे द्वारा नहीं कहा।” फिर उसने कहा, “हे लोगो, तुम सब के सब सुन लो।”
अहाब की मृत्यु
(2 इति 18:28–34)
29तब इस्राएल के राजा और यहूदा के राजा यहोशापात दोनों ने गिलाद के रामोत पर चढ़ाई की। 30और इस्राएल के राजा ने यहोशापात से कहा, “मैं तो भेष बदलकर युद्ध क्षेत्र में जाऊँगा, परन्तु तू अपने ही वस्त्र पहिने रहना।” तब इस्राएल का राजा भेष बदलकर युद्ध क्षेत्र में गया। 31अराम के राजा ने तो अपने रथों के बत्तीसों प्रधानों को आज्ञा दी थी, “न तो छोटे से लड़ो और न बड़े से, केवल इस्राएल के राजा से युद्ध करो।” 32अत: जब रथों के प्रधानों ने यहोशापात को देखा, तब कहा, “निश्‍चय इस्राएल का राजा वही है।” और वे उसी से युद्ध करने को मुड़े; तब यहोशापात चिल्‍ला उठा। 33यह देखकर कि वह इस्राएल का राजा नहीं है, रथों के प्रधान उसका पीछा छोड़कर लौट गए। 34तब किसी ने अटकल से एक तीर चलाया और वह इस्राएल के राजा के झिलम और निचले वस्त्र के बीच छेदकर लगा; तब उसने अपने सारथी से कहा, “मैं घायल हो गया हूँ इसलिये बागडोर#22:34 मूल में, अपना हाथ फेर कर मुझे सेना में से बाहर निकाल ले चल।”
35और उस दिन युद्ध बढ़ता गया और राजा अपने रथ में औरों के सहारे अरामियों के सम्मुख खड़ा रहा, और साँझ को मर गया; और उसके घाव का लहू बहकर रथ के पायदान में भर गया। 36सूर्य डूबते हुए सेना में यह पुकार हुई, “हर एक अपने नगर और अपने देश को लौट जाए।”
37जब राजा मर गया, तब शोमरोन को पहुँचाया गया और शोमरोन में उसे मिट्टी दी गई। 38और यहोवा के वचन के अनुसार जब उसका रथ शोमरोन के पोखरे में धोया गया, तब कुत्तों ने उसका लहू चाट लिया; और वेश्याएँ यहीं स्‍नान करती थीं। 39अहाब के और सब काम जो उसने किए, और हाथीदाँत का जो भवन उसने बनाया, और जो जो नगर उसने बसाए थे, यह सब क्या इस्राएली राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 40अत: अहाब अपने पुरखाओं के संग सो गया और उसका पुत्र अहज्याह उसके स्थान पर राज्य करने लगा।
यहूदा का राजा यहोशापात
(2 इति 20:31—21:1)
41इस्राएल के राजा अहाब के चौथे वर्ष में आसा का पुत्र यहोशापात यहूदा पर राज्य करने लगा। 42जब यहोशापात राज्य करने लगा, तब वह पैंतीस वर्ष का था, और पच्‍चीस वर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। उसकी माता का नाम अजूबा था, जो शिल्ही की बेटी थी। 43और उसकी चाल सब प्रकार से उसके पिता आसा की सी थी, अर्थात् जो यहोवा की दृष्‍टि में ठीक है वही वह करता रहा, और उससे कुछ न मुड़ा। तौभी ऊँचे स्थान ढाए न गए, प्रजा के लोग ऊँचे स्थानों पर उस समय भी बलि किया करते थे और धूप भी जलाया करते थे। 44यहोशापात ने इस्राएल के राजा से मेल किया। 45यहोशापात के काम और जो वीरता उस ने दिखाई, और उसने जो जो लड़ाइयाँ कीं, यह सब क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 46पुरुषगामियों में से जो उसके पिता आसा के दिनों में रह गए थे, उनको उसने देश में से नष्‍ट किया।
47उस समय एदोम में कोई राजा न था; एक नायब राजकाज का काम करता था। 48फिर यहोशापात ने तर्शीश के जहाज सोना लाने के लिये ओपीर जाने को बनवा लिए, परन्तु वे एश्योनगेबेर में टूट गए, इसलिये वहाँ न जा सके। 49तब अहाब के पुत्र अहज्याह ने यहोशापात से कहा, “मेरे जहाजियों को अपने जहाजियों के संग, जहाजों में जाने दे;” परन्तु यहोशापात ने इन्कार किया। 50और यहोशापात अपने पुरखाओं के संग सो गया और उसको उसके पुरखाओं के साथ उसके मूलपुरुष दाऊद के नगर में मिट्टी दी गई। और उसका पुत्र यहोराम उसके स्थान पर राज्य करने लगा।
इस्राएल का राजा अहज्याह
51यहूदा के राजा यहोशापात के सत्रहवें वर्ष में अहाब का पुत्र अहज्याह शोमरोन में इस्राएल पर राज्य करने लगा और दो वर्ष तक इस्राएल पर राज्य करता रहा। 52उसने वह किया, जो यहोवा की दृष्‍टि में बुरा था। और उसकी चाल उसके माता पिता, और नबात के पुत्र यारोबाम की सी थी जिसने इस्राएल से पाप करवाया था। 53जैसे उसका पिता बाल की उपासना और उसे दण्डवत् करने से इस्राएल के परमेश्‍वर यहोवा को क्रोधित करता रहा वैसे ही अहज्याह भी करता रहा।

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