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भजन संहिता 42:1-2

भजन संहिता 42:1-2 HINCLBSI

जैसे हरिणी को बहते झरनों की चाह होती है वैसे ही, हे परमेश्‍वर, मेरे प्राण को तेरी प्‍यास है। मेरा प्राण परमेश्‍वर के, जीवंत परमेश्‍वर के दर्शन का प्‍यासा है। मैं कब जाऊंगा और परमेश्‍वर के मुख का दर्शन पाऊंगा?

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