“अपे उपासुः रेदो, कपटी कू घयते मन उदास ते अलोपे दोहोनू, कहेकि हेंकू उपास केनाय मेनते कू अड़ींग वकू लगड, अँख मुरथन तकुकू लोरमो गोत्तेआ। इंञ अपे सही मेतेंञ कहनी वपे तना, हेंकू अकू राः फल कू ञँमकेडा। लेकिन अम उपासुः रेदो, उब्मी रे सुनूम मी ओजाऊ, अवुर अहाम मी कुरकुरो, ताकि होड़कू मेने, लेकिन मेन ञेंलुअय सरग रेनिय अपुम भर उपास केनाम हेनाय पपाड़ी। अवुर अपुम सीड़िंय ञें-लेआ, हेंय अम फालिय ओवा मिआँ।”