तोंहरे पंचन म से अइसन कउन हय, जउन बड़ा घर बनामँइ चाहत होय, अउर पहिले बइठिके खरचा न जोरय, कि सगला घर बनामँइ के हिम्मत हमरे हय कि नहीं? कहँव अइसन न होय, कि नेव भर देय अउर घर न बनाए पाबय, तब सगले देखइआ, इआ कहिके ओखर हँसी उड़ामँइ लागँय, इआ ‘मनई घर त बनामँइ लाग, पय बनए नहीं पाइस?’