‘जो विदेशी व्यक्ति
मुझ-प्रभु के अनुयायी हो गए हैं,
जो मेरी सेवा करते हैं, मेरे नाम से प्रेम करते हैं,
और मेरे सेवक हैं,
जो विश्राम-दिवस का पालन करते हैं
और उसको अपवित्र नहीं करते हैं,
जो मेरे विधान पर दृढ़ हैं;
उनको मैं अपने पवित्र पर्वत पर लाऊंगा;
अपने प्रार्थनाघर में
उन्हें आनन्द प्रदान करूंगा।
जब वे वेदी पर अपनी अग्निबलि तथा
अन्न-बलि चढ़ाएंगे
तब मैं उनकी बलि स्वीकार करूंगा;
क्योंकि मेरा घर सब जातियों के लिए
प्रार्थना का घर कहलागा।’